रचना की गर्म म्यूजिक क्लास kamvasna kamasutra
एक तो संगीत तथा नृत्य का शाही शौक, उस पर उसका गजब का हुस्न बड़ा ही कातिलाना था। जब रचना सुरीली आवाज में गाते हुए थिरकती थी, तो देखने वालों को ऐसा अनुमान होता था, जैसे धरती पर इन्द्र के साम्राज्य से कोई अप्सरा उतर आई हो।
रचना के अधर इतने सुकोमल तथा बेहतरीन बनावट के थे, कि गुलाब की तराशी हुई पंखुड़ियाँ भी रचना के अधरों के आगे फीकी पड़ कर मुरझा जाती थी। पतले-पतले तथा बिना लिपिस्टक लगाये भी रचना के होठों पर रक्तिम लालिमा विद्यमान रहती थी। ऐसे मधुर अधरों का रसपान करने के लिए कई ललायित भवरें उसके इर्द-गिर्द मंडराते रहते थे।
रचना ने दसवीं कक्षा पास करके म्युजिक यानि संगीत में पारगंता पाने के लिए ‘सुर समागम’ नाम के एक संगीत महाविद्यालय में दाखिला लिया था।
संगीत के क्षेत्रा में इस संगीत-विद्यालय का नाम बहुत प्रसिद्ध था। लिहाजा रचना ने अपनी मम्मी की स्वीकृति तथा सहयोग से उस संगीत के विद्यालय में दाखिला ले लिया।
इस महाविद्यालय के प्राध्यापक यानि संगीत के विद्यालय के प्रिंसिपल थेµ प्रकट सिंह। जब रचना ने इस संगीत के विद्यालय में दाखिला लिया, तब प्रकट सिंह की उम्र लगभग 48 के आसपास थी।
रचना, बड़ी खुशी-खुशी से उस विद्यालय के पहले आयोजन तथा संबोधन सम्मेलन में भाग लेने गई थी। उस विद्यालय के आयोजन में भाग लेने वाले सभी छात्रा व छात्राओं में से रचना भी एक छात्रा थी।
उस वक्त स्टेज पर उस संगीत महाविद्यालय का प्रिंसिपल यानी प्रकट सिंह स्पीच दे रहा था, ‘‘देखो, छात्रों व छात्राओं! इस संगीत के महाविद्यालय में वही छात्रा व छात्रा सफल हो सकती है, जिसमें संगीत के प्रति अटूट श्रद्धा हो, प्रबल इच्छा शक्ति हो, मन में आत्म-विश्वास हो तथा लगन हो, वही व्यक्ति सफलता हासिल कर सकता है।’’
महाविद्यालय का प्रिसिंपल आगे स्पीच देता हुआ गर्व से बोला, ‘‘हमारे संगीत के विश्वविद्यालय ने कई पाॅप-स्टार व गायक इस विश्व को दिये हैं। उन सभी सफल पाॅप-स्टारों तथा गायकों ने विश्व में नाम कमाया है। उम्मीद है, कि आज जो इस संगीत महाविद्यालय में उपस्थित हैं, वे सभी भविष्य में बड़े पाॅप-स्टार बनेंगे या बड़े गायक बनेंगे। धन्यवाद!’’
प्रिंसिपल प्रकट सिंह ने अपनी स्पीच(भाषण) खत्म की और उसी वक्त तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाॅल गूंज उठा। रचना तो उस स्पीच देने वाले प्रिंसिपल की स्पीच पर ही मर-मिटी थी। वह वहीं बैठे-बैठे सोचने लगी, कि वह भी एक दिन बहुत महान गायिका बनेगी।
उसी रोज, रचना की पहली म्यूजिकल क्लास हुई थी।
पहले ही दिन क्लास में एक लेडी टीचर संगीत की शिक्षा देने आई थी। रचना ने वह संगीत का लेक्चर बड़े ध्यान से सुना। उस पहले लेक्चर में लेडी टीचर ने सुर तथा रागों के विषय में संक्षिप्त भाषण दिया था। उस भाषण को सुनकर रचना को कई नई बातें संगीत के विषय में पता चली थीं।
संगीत की क्लास अटैन्ड करके वह दोपहर को काॅलेज की क्लासें अटैन्ड करने चली गई थी। इस तरह रचना दो-दो पढ़ाईयां एक ही समय में, एक ही साथ कर रही थी। यानि रचना, संगीत की शिक्षा तथा काॅलेज की पढ़ाई एक साथ कर रही थी।
उसकी तमन्ना थी, कि वह काॅलेज उत्तीर्ण करे और उसी दौरान संगीत की शिक्षा भी प्राप्त कर ले, जिससे वह एक बेहतरीन सिंगर यानि गायिका बन सके।
इसी सोच व तमन्ना के तहत रचना एक महीने तक संगीत तथा काॅलेज की शिक्षा एक साथ ग्रहण करती रही। दोनों क्लासों को अटैन्ड करते वक्त वह यही सोचती थी, कि या तो वह डाॅक्टर बन जाएगी या फिर संगीत की शिक्षा में पारंगत होकर बड़ी सिंगर बन जाएगी। जिस तरफ भी उसका ‘लक’ यानि भाग्य ले जाएगा, वह उसी तरफ दौड़ पड़ेगी।
यह दूसरे महीने की बात है। रचना अपनी कक्षा में बैठी संगीत की कक्षा अटैन्ड कर रही थी। उस वक्त लेडी टीचर संगीत शिक्षा प्रदान कर रही थी। तभी उस विद्यालय के प्राध्यापक यानि प्रिंसिपल कक्षा में अचानक आ धमके। कक्षा में प्रवेश करते ही उन्होंने लेडी टीचर से पूछा, ‘‘हां, तो मिस लिलि! बच्चों को अब तक कितने सुरों के विषय में बताया है?’’
लेडी टीचर एकदम से कुर्सी से खड़ी होकर बोली, ‘‘गुड माॅ£नंग सर!’’ वह बड़े अदब से जवाब देने लगी, ‘‘सर, अभी तक केवल तीन सुरों के विषय में ही इस कक्षा के स्टूडेन्ट्स को शिक्षा दी है। साथ ही उन तीनों सुरों से संबंधित फिल्मी, नाॅन-फिल्मी गानों के विषय पर भी विस्तार से बता कर सुरों की बारीकियों को समझाने की कोशिश की है।’’
‘‘हूं…! ठीक है।’’ कहकर प्रिंसिपल ने कक्षा में बैठे सभी स्टूडेन्ट्स की तरफ देखना आरम्भ कर दिया।
अचानक प्रिंसिपल की निगाहें रचना पर टिक गईं। उसकी खूबसूरती से वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।
‘‘चलो तुम खड़ी हो जाओ।’’ प्रिंसिपल ने रचना के करीब पहुंच कर उसके एक कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘अब तुम संगीत के पहले सुर के विषय में मुझे बताओ और इस सुर से संबंधित कोई फिल्मी या नाॅन-फिल्मी गाने का एकाधा उदाहरण भी मुझे बताओ।’’
प्रिंसिपल ने सवाल पूछा, तो एकाएक उसका ध्यान रचना के कोमल कन्धे की तरफ चला गया। उसने एक-दो दफा उस कंधे को दबा कर देखा, तो उस समय ऐसा लगा, कि उसने कोई रूई की ऐसी गेंद पकड़ ली थी, जिसमें नर्म-कोमल लकड़ी की खपच्चियां भरी हुई हों।
पर उस वक्त तो, एक-दो दफा उस नर्म कोमल कन्धे को दबा कर प्रिंसिपल ने रचना के कन्धे को छोड़ दिया था और अपने प्रश्न का जवाब सुनने लगा था।
रचना, डेस्क से खड़ी होकर प्रिंसिपल के प्रश्न का जवाब देने लगी, ‘‘सर! प्रथम सुर में तथा पंचम सुर में काफी समानता होती है। मैडम ने इसी समानता के मध्य नजर पंचम सुर में गाये जाने वाले सुर का एक गीत हमें सिखाया है। वह गीत है…“
अभी रचना गाने वाली थी, कि उसी वक्त प्रिंसिपल ने रचना के दूसरे कन्धे पर हाथ रखकर उसे दबाकर उसकी कोमलता को अनुभव करते हुए उसे शबाशी देते हुए महसूस किया। वह मस्त हो गया। वह कन्धा भी प्रिंसिपल को एकदम साॅफ्ट तथा रूई का बना हुआ महसूस हुआ था।
पर प्रिंसिपल ने अपनी भावनाओं को हृदय में दबा कर रचना की तारीफ करनी आरम्भ कर दी, ‘‘वाह! वाह! क्या आवाज़ है। बिल्कुल ऐसा लग रहा था, जैसे ‘ओरिजनल सिंगर!’ गीत गा रही है। वाह! मजा आ गया। आवाज में गजब का ठहराव है, सुर में सुरम्यता है।’’
प्रिंसिपल लगातार रचना के मौखिक-हुस्न का नजरों से पान करते हुए बोलते जा रहा था, ”यकीनन, तुम में किसी महान सिंगर की आत्मा बसी हुई है। तुम बहुन नाम कमा सकती हो।“
इसके बाद कुछ सोचते हुए प्रिंसिपल, लेडी-टीचर लिलि के पास गया, ‘‘देखो! मिस लिलि, मुझे इस लड़की में गजब की प्रतिभा छिपी नजर आती है। तुम इसकी प्रतिभा को और निखारते हुए इसके जिस्म से बाहर निकालो और मुझे रिपोर्ट करो। एक हफ्ते में मैं रिजल्ट चाहता हूं। इस लड़की पर विशेष ध्यान दो।’’
‘‘यस सर!’’ अपने दोनों हाथ पीठ के पीछे बांध कर, अटेंशन की मुद्रा बनाकर लिलि ने जवाब दिया, ‘‘सर! मैं इस होनहार बच्ची का खास ख्याल रखूंगी।’’
इस तरह के जवाब से पूरी कक्षा में एक संदेश चला गया, कि इस स्कूल का प्रिंसिपल सर्वोपरी है। छात्रा व छात्राएं प्रिंसिपल के व्यक्तित्व से प्रभावित हो गये थे। रचना तो पूरी तरह प्रिंसिपल के व्यक्तित्व से सम्मोहित-सी हो गई थी।
प्रिंसिपल के कक्षा से बाहर निकलते ही लेडी टीचर लिलि ने सर्वप्रथम रचना को सबसे आगे के डेस्क पर बैठाया और उसे पहले सुर तथा पचंमसुर के विषय में विस्तार से बताने लगी, उससे गाने गवां कर रियाज़ करवाने लगी थी।
पूरी कक्षा में एक समां-सा बंध गया था, जब रचना ने पक्के सुर वाले तथा पचंम सुर वाले फिल्मी तथा नाॅन-फिल्मी गीत कक्षा में सुनाने आरम्भ कर दिये थे। कक्षा भी मंत्रा-मुग्ध सी हो गई थी। उस वक्त लेडी-टीचर ने भी रचना की काफी तारीफ की थी। वाकई रचना की आवाज में जादुई असर था और उसके बदन में कोमलता का तथा सौन्दर्य का अनोखा समावेश था।
इसके बाद तो हर रोज प्रिंसिपल रचना की कक्षा में तथा अन्य कक्षाओं में भ्रमण करने लगा था। प्रिंसिपल रचना पर खास तरीके की मेहरबानी करने लगा था। प्रिंसिपल की उस समय उम्र थी 48 के आसपास और रचना की उम्र उस वक्त 16 के आसपास।
रचना तो अपने प्रिंसिपल से प्रभावित हो चुकी थी और प्रिंसिपल, रचना के मामले में अपने लेबल पर प्रभावित हो चुका था। वह उसके हुस्न पर तथा प्रतिभा पर मर मिटा था।
एक तरफ प्रिंसिपल के मन की विचित्र भावनाएं थी, तो दूसरी तरफ रचना यह समझ रही थी, कि यदि संगीत के मामले में पारंगत प्रिंसिपल की उस पर खास मेहरबानी है, तो यकीनन उसमें कोई न कोई खूबी जरूर होगी।
और एक दिन प्रिंसिपल ने रचना को अपने खास कक्ष में, एकान्त में बुला ही लिया था। उस दिन रचना ने यही सोचा था, कि आज उसे कोई संगीत के खास व गुप्त नुस्खों के विषय में बताया जाएगा।
रचना, प्रिंसिपल के कक्ष में पहुंची, तो प्रिंसिपल ने सबसे पहले अपने कक्ष का दरवाजा बन्द किया। फिर संगीत पर एक संक्षिप्त-सा लेक्चर दिया।
एक-दो फिल्मी गीत रचना को अपनी आवाज में सुनाए। फिर तरगों तथा सुरों की हकीकत बताने के लिए प्रिंसिपल ने अचानक व अप्रत्याशित रूप से वस्त्रों के ऊपर से ही रचना के एक कोमल ‘कबूतर’ को अपने मुख में भरकर उसे तेजी से चूमा और दांतों के बीच दबा कर कुछ देर तक प्रतिक्रिया करने के बाद उसे छोड़ दिया।
फिर जैसे ही कुछ कहने लगा, उसी वक्त रचना ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, ‘‘ओह माई गाॅड! यह क्या किया आपने?’’
‘‘घबराओ मत, मैं तुम्हें शरीर तथा वीणा में समानता व इन के भेद बता रहा हूं।’’ वह फिर बोला, ‘‘देखो! वीणा तथा हारमोनियम पर जब अंगुलियां हरकत करती हैं, उसके तारों पर जब कोई संगीतकार सुरढाता है, तो वीणा बजने लगती है। सर्वप्रथम शरीर की वीणा को समझो, तो सुर-ताल खुद ब खुद समझ में आने लगते हैं।’’
‘‘लेकिन सर! मुझे यह सब कुछ ठीक नहीं लगता।’’ रचना की आवाज में हल्का-सा विरोध था, कम्पन्न था।
पर इस विरोध को भांप कर प्रिंसिपल ने अलग तरीके का जवाब दिया, ‘‘देखो! रचना! जब किसी स्त्राी या पुरुष के वीणा के तारों को बजाया जाता है, तो तनरूपी वीणा के तार झनझना उठते हैं। स्त्राी के तन में स्तन तथा यौनि के भीतर छिपे ‘तार’ वीणा के तारों की ही तरह के संवेदनशील प्वाॅइन्ट होते हैं, जिनके माध्यम से विचित्रा तरह के यौन-संगीत का उत्सर्जन होता है। पहले अपने जिस्म के यौन-संगीत को उत्पन्न करने वाले तारों को तथा उन्हें झन्कृत करने वाले उद्गारों को तुम समझो और इनकी बेआवाज झंकार को समझो। तभी तुम्हें संगीत की असली भाषा समझ में आएगी रचना।’’
‘‘सर, प्लीज!’’ रचना शरमाने लगी थी, ‘‘मुझे यह सब कुछ ठीक नहीं लगता। नहीं सर मैं….।’’
अभी रचना और कुछ कहना चाहती थी, कि उसी वक्त प्रिंसिपल ने कठोर आवाज में कहा, ‘‘बस, बन्द करो अपनी बकवास। मेरे पास किसी को समझाने का इतना वक्त नहीं है। यदि तुम यह नहीं समझ सकीं, कि तुम्हारा जिस्म भी एक वीणा है और उसे बजाने के लिए, एक कुशल साजकार के फनकार की जरूरत है, तो तुम संगीत की शिक्षा में कभी पारंगत नहीं हो सकती।’’
प्रिंसिपल की तेज आवाज तथा चेतावनी भरी बात सुनकर रचना सहम गई। वह सहमी हुई आवाज में बोली, ‘‘ठीक… ठीक है सर! मैं आपका कहना मानूंगी, मैं महान गायिका बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।’’
‘‘तो ठीक है।’’ प्रिंसिपल बोला, ‘‘पहले मेरी ‘गिटार’ पर अंगुलियों के माध्यम से उसमे उत्थान संगीत भरो।’’
प्रिंसिपल ने अपनी पैन्ट की जीप खोल कर गिटार का प्रारूप, रचना के समक्ष प्रस्तुत कर दिया, ‘‘इस गिटार पर अपनी अंगुलियों के माध्यम से संगीत के सुर भरो। जिस तरह गिटार पर अंगुलियाँ चलाई जाती हैं, ठीक उसी तरह इसे गिटार समझ कर इसमें मधुर झंकार भरो, वो भी प्यार से।’’
प्रिंसिपल ने हिदायत दी, तो रचना ने सहमे हुए अंदाज में, कांपते हाथों से हिदायत का पालन किया। उसने प्रिंसिपल की गिटार को अपनी अंगुलियों से छुआ, तो गिटार में फनफनाहट वाला अष्टम सुर, वाला संगीत उत्पन्न होने लगा। गिटार स्वमेय बजने लगी, गिटार के तार कस गये, गिटार का आरम्भ स्थान झन्कृत होकर फनफनाहट वाला अष्टम सुर अलापने लगा, थोड़ी ही देर बाद गिटार में इतना जबरदस्त तूफानी संगीत उत्पन्न हो गया कि गिटार के तार-तार झनझना उठे थे।
उसी वक्त प्रिंसिपल ने अपना वस्त्रा खोलकर तथा अन्डरवियर को नीचे गिरा दिया था और बड़े ही मस्त अंदाज में बोला, ‘‘अब अपने होठों से छू लो तुम, मेरा संगीत अमर कर दो।’’
प्रिंसिपल किसी कम उम्र प्रेमी की तरह शायराना अंदाज में बोला, ‘‘इस गिटार के तारों को यदि तुमने छेड़ा, तो तुम्हें जन्नत के संगीत का अनुभव होगा और मैं जन्नत का शंहशाह बन जाऊंगा।’’
रचना को जरा-सा संकोच हुआ। वह प्रिंसिपल की बात का रहस्य समझ गई थी। वह यह कार्य नहीं करना चाहती थी, पर उसने अपने मन को मारकर वह कार्य आरम्भ किया, तो उस गिटार के तार यों झनझना उठे, कि उसका मुख ही संगीत से भर गया था।
‘‘वाह! क्या बढ़िया संगीत उत्पन्न हो रहा है। वाकई तुम अब दुनियां की बेहतरीन सिंगर बनोगी, तुम्हें बांसुरी बजाना सीखा रहा हूं, जरा अधरों का तथा जिह्वा का अच्छे तरीके से प्रयोग करो। आह! हां, बेहतरीन सुर निकल रहा है।’’ कहकर प्रिंसिपल ने अपने दोनों हाथों से रचना का सिर थाम लिया।
उसके बालों में अंगुलियाँ फिराते हुए वह अपने आपको हल्के-सुर में आगे-पीछे करने लगा, ‘‘जन्नत में यही सुर बजता है, इसी सुर की महिमा पूरे विश्व में है, तुमने बांसुरी बजाना सीख लिया, तो यकीनन बाद में बहुत बड़ी संगीतकार तथा गायिका बनोगी।’’
प्रिंसिपल थोड़ी देर बाद रूक गया और उसने अपने ऊपरी वस्त्रा हटाने आरम्भ कर दिये। मात्रा आधे मिनट में ही उसने अपने ऊपरी वस्त्रा हटा दिये। उसके बाद अपनी गिटार को प्रिंसिपल ने अधर-संगीत से मुक्त करवा दिया, ‘‘देखो, रचना, अभी-अभी तुमने केवल गिटार बजाना सीखा है, उसमें सुर भरना तथा सुर उठाना सीखा है, अब मैं तुम्हें यह सीखाऊंगा कि सैक्सोफोन या पीपणी या बीन कैसे बजाई जाती है?’’
‘‘ठीक है सर!’’ रचना ने शर्म से सिर नीचा करके संक्षिप्त-सा जवाब दिया।
उसने सोचा लैक्चर पूरा हो गया है। उसका मन हल्का हो गया था, उसके बाद अविलम्ब प्रिंसिपल ने रचना के वस्त्रों को उसके बदन से पृथक करना आरम्भ कर दिया। यह सोचकर, कि कहीं देर न हो जाये या फिर मौके पर चैका लगाने की हसरत अधूरी न छूट जाये।
प्रिंसिपल ने बला की फुर्ती से रचना के वस्त्रों को उसके बदन से अलग करना आरम्भ किया, तो वह बोल उठी, ‘‘नहीं-नहीं सर! ऐसा मत कीजिए। मुझे बड़ी शर्म आती है। तुम शर्म करोगी, तो बड़ी संगीतकार नहीं बन सकोगी। मैं तुम्हें बीन बजाना सीखा रहा हूं। बीन के सुर, समझी! ज्यादा देर मत करो, वरना मेरा मन बिगड़ गया तो सब चैपट हो जाएगा।’’
फिर रचना विवश हो गई। मजबूरन उसे अपने वस्त्रा हटवाने पड़े। उसके उपरान्त प्रिंसिपल ने रचना को पास ही पड़ी ‘सेटी’ पर लिटा दिया। फिर उसकी टागें, सेटी से नीचे उतार कर, उसकी टागों के मध्य वह स्वयं घुटनों के बल बैठ गया, ‘‘देखो मैंने ‘बीन’ प्राप्त कर ली है। बस, मुख से बीन का मुखाने सटाने की जरूरत है। उसके बाद मैं ‘बीन बजाना’ आरम्भ कर दूंगा। तुम देखना बीन बजते ही तुम्हारे शरीर में नागिन की तरह का डांस करने की चाहत पैदा होने लगेगी। तुम नागिन की तरह बल खाने लगोगी। तुम्हारे मुख से नागिन संगीत फूंटने लगेगा, वह भी अपने आप।’’
प्रिंसिपल की बातें सुनकर रचना के जिस्म में सुरसुर्री सी छूटने लगी। अभी वह उस दृश्य की परिकल्पना ही कर रही थी, कि उसी वक्त उसके तपते बदन पर प्रिंसिपल के तपते अधरों ने तथा दांतों ने हमला बोल दिया।
उस वक्त रचना को यूं लगा था, मानों उसके उस छिपे हुए बदन के इर्द-गिर्द कई ‘ततैयांे, बर्रो’ ने हमला बोल दिया हो। इस हमले से उसकी कमर में ऐंठन होने लगी थी।
पहली दफा उसे इस तरह की अनुभूति हो रही थी, कि उस वक्त उसका मन, उसके नियंत्राण में नहीं है, मन उसके वश से बाहर हो गया है। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कि वह क्या करे और क्या न करे? एक तरफ मन कह रहा था, कि सब कुछ होने दो, जो हो रहा है…
तो दूसरी तरफ विवेक मन को रोक रहा था, कि कुछ अनर्थ होने जा रहा है। विवेक मन की नहीं, बल्कि आत्मा की बात इंसान को वक्त-वक्त पर बताता है, चेताता है, पर विवेक का सहारा कौन लेता है?
जब इंसान विवेकहीन हो जाता है और मन का कहना मानने लग जाता है, तब कुछ न कुछ अघटित होकर ही रहता है। ऐसे ही रचना भी अपने विवेक को भुला कर, आत्मिक चेतावनी को भुलाकर, आगे बढ़ गई। और जब वह इस जदो-जेहद से बाहर निकली तब रचना ने पाया कि वह पूरी तरह से उतेजना के शिखर पर बैठ गई थी। अब उसमें विरोध करने की या विवेक नाम की कोई वस्तु शेष नहीं रह गई थी।
प्रिंसिपल ने अच्छी तरह से अपने अधरों से रचना की बीन क्या बजाई, रचना चारों-खाने चित्त हो गई। यानि वह चारों दिशाओं से चित्त हो गई।
उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और अस्फुट आवाज में रचना स्वयं ही कहने लगी, ‘‘ओह…..अ….ब….बस करो न……उम्म! माई गाड! यह कैसी अद्भुत अनुभूति है, आह! उई माँ, मर गई! सर अब बस करो न… कुछ ठोस वस्तु बीन के काफी अन्दर तक प्रविष्ट करवा कर बीन बजाओ। होठों से तथा जुबान से काम नहीं बन पा रहा है।’’
आखिरकार रचना के मन ने वह बात कहलवा दी, जिसे होशोहवास में वह कभी भी नहीं कह सकती थी।
उसके बाद रचना के मुख से कोई भी आवाज नहीं निकली। वह केवल अपने जिस्म पर रेंगने वाले अधरों का तथा जिह्वा और कभी-कभी दांतों का अनुभव करके पागल-सी हो उठी। वह वाकई जन्नत में पहुंच गई।
इसके बाद, प्रिंसिपल ने अपना मुंह वहां से हटाया और बोला, ‘‘देखा कैसे स्वयं ही बीन बजने लगी है, तुम्हारे मुख से नागिन संगीत फूटने लगा है। यही वह संगीत है, जिसे अनुभव करने के बाद तुम वाकई संगीत को अच्छी तरह समझ जाओगी रचना।’’
और उसके बाद प्रिंसिपल ने गिटार और बीन का ऐसा मिलान करवाया, कि अछूती रचना की बीन में जन्नत की स्वर लहरी गूंजने लगी। इस जन्नत की स्वर-लहरी के दौरान कब उसके कौमार्य की वीणा के तार टूट गये, उसे कुछ खबर तक नहीं रही।
जब संगीत का स्वर थमा, सुर-अलाप को विराम लगा, तो रचना ने महसूस किया, कि उसकी ‘बीन’ पूरी तरह से सभी प्रकार के सुरों से भर गई है। प्रथम से लेकर अष्टम सुर तक, धक-धक करके सुर उसकी बीन में भर गये थे। वह आंखें मुंदें उस एहसास को महसूस करती रही।
फिर उसे लगा कि गिटार सूक्ष्म रूप धारण करके, उसकी बीन से बाहर आ गई और प्रिंसिपल उसके जिस्म से हट गया। तब भी रचना को एक विचित्रा अनुभव होता रहा। उसे यह अनुभव होता रहा, कि उसकी बीन से कुछ सुर टपक-टपक कर बाहर निकल रहे हैं।
रचना मस्त हो गई। उसने प्रिंसिपल से लेटे-लेटे ही कहा, ‘‘वाकई! आपका यह संगीत सीखाने वाला अंदाज मेरे लिए बेहतरीन था और किसी की मैं बात नहीं करती, पर मेरे लिए यह संगीत का अंदाज अपूर्व था। मुझे याद रहेगा आपका यह ‘अंदाज’।’’
‘‘और मुझे भी यह अंदाज याद रहेगा।’’ प्रिंसिपल, रचना के अधरों को चूमने के बाद बोला, ‘‘यदि तुम चाहो, तो यही संगीत का शिक्षण जारी रहेगा और तुम वाकई कोई न कोई संगीत की खूबी को प्राप्त कर लोगी।’’
इसके बाद प्रिंसिपल ने संगीत के पहले अध्याय का समापन किया और रचना को कुछ निर्देश देकर उसे अपने कक्ष से रूख्सत कर दिया।
कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा हो सकता है।