काॅलगर्ल राखी xxx antarvasna sex
कहकर उसने कस्टमर की जांघों को सहलाते हुए वहां चूमना शुरू कर दिया…
”ओह राखी।“ कस्टमर भी मदहोश होता हुआ बोला, ”तुम्हारी इन्हीं अदाओं का तो मैं दीवाना हूं। इसीलिए तो तुम्हारे सिवा और कहीं नहीं जाता मैं अपनी प्यास बुझाने।“
”ये तो वाकई सच कहा आपने मि0।“ राखी भी अपने हुस्न पर इतराती हुई बोली, ”जो एक बार इस राखी के हुस्न का स्वाद चख लेता है, वो बस राखी का ही होकर रह जाता है।“
”अब जानेमन बातों से ही दिल बहलाओगी कि एक पेग और बनाओगी?“ वह राखी के गुलाबी होंठों को चूमते हुए बोला, ”पिलाओ और पियो। उसके बाद आगे का कार्यक्रम शुरू करते हैं।“
फिर कुछ देर पीने-पिलाने का प्रोग्राम चल पड़ा। राखी वैसे तो पीती नहीं थी, मगर कभी-कभार मोटी आसामी वाले ग्राहक को खुश करने के लिए एक-आध पेग ले लती थी।
फिर पीने का दौर खत्म हुआ, तो राखी ने पहले कस्टमर के वस्त्रा उतारे। उसके बाद स्वयं भी खुद निर्वस्त्रा हो गई और कस्टमर के ऊपर आकर स्वयं प्यार की कमान संभालती हुई बोली, ”अब देखो राखी के हुस्न का कमाल।“ कहकर उसने कस्टमर को सिर से लेकर पांव तक चूम डाला। एक-एक अंग को मौखिक दुलार देते हुए खुश करती रही।
फिर जब ग्राहक राखी के हुस्न की सवारी करने लगा, तो राखी भी नीचे से उचक-उचक कर ग्राहक को उत्साहित करने लगी, ”येस…ओह येस… कम आॅन… । मजा तो मुझे देना चाहिए, मगर मुझे तो तुमसे मजा आ रहा है।“
”कोई बात नहीं रानी।“ ग्राहक भी और जोश में आते हुए बोला, ”मुझे भी पूरे पैसे वसूलने आते हैं।“
”मैं भी पीछे नहीं हटने वाली हुजूर।“ एक आंख मारती हुई बोली राखी, ”जैसे चाहो वैसे पैसे वसूल लो अपने।“
फिर क्या था, देखते ही देखते कमरे में वासना का तूफान उठा और शांत हो गया।
राखी दिल्ली में एक किराये के मकान में अकेली रहती थी। वह लगभग 40 साल की भरपूर जवान व विधवा महिला थी। राखी की एक बेटी थी, जो उसके गांव सुल्तान पुर में चाचा-चाची के साथ रहती थी। यहां राखी एक फैक्ट्री में नौकरी करती थी।
यह 6 साल पहले की बात है। उसी समय बीमारी के चलते राखी के पति मोहन का देहांत हो गया था। मोहन की मृत्यु के बाद राखी के ससुराल वालों ने राखी को अपशकुन मानते हुए उससे अपना रिश्ता तोड़ लिया। मोहन की निशानी के तौर पर उन्होंने उसकी इकलौती पुत्राी सोनी को अपने पास रख लिया था।
एक रोज राखी के कमरे की बत्ती गुल थी। दरवाजा अंदर से बंद था। शेखर कुछ ही देर बाद ड्यूटी से घर लौटा था तथा अपना रूम खोलकर कपड़े उतार रहा था। दरअसल शेखर भी उसी मकान मालिक के मकान में किराये पर रहता था, जहां राखी रहती थी। इसी वजह से उसके कमरे में तथा पूरे मकान में लाइट थी, लेकिन राखी के कमरे की लाइट गुल थी। यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
राखी कमरे के अंदर ही थी, अंदर से दरवाजा बंद होना इस बात का गवाह था, कि उसके साथ कमरे के अंदर कोई न कोई तो है। मन न माना तो उसने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। लेकिन भीतर कोई हलचल नहीं हुई, तब शेखर ने राखी…. राखी.. की आवाज़ लगाते हुए उस मकान में रहने वाले दूसरे किराएदारों को इकट्ठा कर लिया।
दरअसल शेखर को कुछ अनहोनी की आशंका दिख रही थी, क्योंकि जब वह ड्यूटी से घर लौट रहा था, तो उसने मकान के पिछवाड़े से चोरों की भांति जाते हुए कुछ लोगों को देखा था, जो राखी के रिश्तेदार या दोस्त थे।
शेखर ने अपनी आशंका प्रकट की, तो कुछ लोगों ने मकान मालिक को बुलाकर राखी के कमरे का दरवाजा तोड़ डाला। जैसे ही लोग अंदर पहुंचे, तो राखी अपने बेड पर मृत पड़ी थी। उसका पूरा बदन खून में नहाया हुआ था। किसी ने तेज धार वाले हथियार से राखी का गला काट कर उसकी हत्या कर दी थी।
इस बीच लोगों ने निकटवर्ती पुलिस थाना कादिर पुर को सूचना दे दी, तो लगभग डेढ़ घंटे बाद पुलिस मौके पर पहुंच गयी। तब तक यहां दरवाजे पर लोगों की भारी भीड़ जमा थी।
मृतका की लाश का मुआयाना करने के बाद पुलिस ने उसका शव पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया। फिर वह राखी के कातिल को धर दबोचने की तैयारी में जुट गयी।
राखी की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज करके पुलिस ने इस संबंध में राखी के निकटवर्ती लोगों तथा किराएदारों से पूछताछ शुरू कर दी, लेकिन कातिल का कुछ पता न चला।
राखी के बारे में पुलिस को पता चला कि वह शहरी संस्कृति में पली-बढ़ी थी। अतः शादी के बाद वह गांव में नहीं रह सकी और पति के साथ दिल्ली शहर आ गयी।
तब अगली बार में शेखर ने वारदात के रोज ड्यूटी से लौटते वक्त मकान क पिछवाड़े में जो कुछ देखा था, उसे पुलिस को बता दिया। शेखर के बयान व संभावित हत्यारों को बारे में दिए गए हुलिए के आधार पर पुलिस ने दो अलग-अलग व्यक्तियों के स्केच चित्रा तैयार किए व हत्यारों की सुराग रसी की तैयारी में जुट गयी।
तीसरे दिन जांच अधिकारी शंकर पाठक को पता चला, कि मृतका राखी के हत्यारे और कोई नहीं, स्वयं उसके अपने रिश्तेदार थे, जो गांव में रहते थे। वे राखी की हत्या की पूरी तैयारी करके दिल्ली लौट आये थे।
दरअसल सुल्तानपुर के कई लड़के दिल्ली में नौकरी करते थे, उनके मार्फत राखी के ससुराल वालों को पता चला था, कि उनके घर की इज्जत दिल्ली में नीलाम हो रही थी। अर्थात् राखी कहने को तो नौकरी करती थी, मगर उसका असली पेशा जिस्मफरोशी का था।
जो भी कोई दिल्ली से घर लौटता, वही राखी के बारे में तरह-तरह की बातें गांव वालों को सुनाता था। यह सब सुनकर इज्जत पर जान देने वाले भैरो सिंह का सिर शर्म से झुक जाता था। जब उनसे और सहन नहीं हो सका, तब उसने अपने साले रविशंकर के साथ मिलकर राखी की हत्या की योजना बना ली और दोनों जीजा-साले दिल्ली पहुंच गए।
यहां उन्होंने अपनी आंखों से अपनी बदचलन बहू का असली चेहरा देख लिया, तो उससे घोर नफरत हो गयी। उन्होंने राखी से कमरे का दरवाजा खुलवाया, फिर अंदर से दरवाजा बंद करके रविशंकर ने राखी के गले पर चाकू रखकर उसे मौत के घाट उतार दिया। राखी की मौत के बाद दोनों ने पुलिस व कानून की आंखों में धूल झांेकने की कोशिश की और पिछवाड़े के रैन वाटर पाइप के सहारे नीचे उतर गए और फरार हो गए।
पुलिस ने भैरो सिंह व रविशंकर दोनों को राखी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। दोनों ने पुलिस को दिए अपने बयान में राखी की हत्या का अपराध कबूल कर लिया था।
अब तक की तफ्तीश में पता चला है कि राखी उन औरतों में से थी, जो एक मर्द के साथ अपनी जिन्दगी निबाह नहीं करती। राखी को मर्द बदलने का शौक था। वह अलग-अलग समय में अलग-अलग मर्दों से प्यार करती थी।
खैर! जब पाप का घड़ा भर जाता है, तो वह फूटता ही है। राखी ने सोचा तक नहीं होगा, कि उसकी जिन्दगी का अंत उसके ही अपने लोग कर देंगे।
(कथा में प्रतीक चित्रों का प्रयोग किया गया है।)