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Antarvasna Sex Kahani मस्तराम के जोश में मस्त रेशमा

Antarvasna Sex Kahani मस्तराम के जोश में मस्त रेशमा

बाबू सिंह के तैयार होने के पहले ही रेशमा कीचन में जाकर फटाफट उसके लिये नाश्ता और दोपहर का लंच तैयार कर देती थी। उसके आॅफिस चले जाने के बाद ही रेशमा घर का कोई दूसरा काम करती थी।
जल्दी उठ जाने के कारण रेशमा की नींद पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उसके जाते ही वह पुनः बिस्तर पर जा गिरी।
उसकी आंखों में नींद की खुमारी भरी थी, इसलिये बिस्तर के नर्म गद्दे पर लेटते ही उसे नींद आ गई। उसकी बगल में दोनों छोटे बच्चे सो रहे थे। बेख्याली में रेशमा ने अपने छोटे बच्चे को खींचकर अपने सीने से चिपटा लिया। बाबू सिंह के साथ उसका ममेरा भाई मस्तराम रहता था। मस्तराम भी हंस भवन में सफाई कर्मी था। आज उसने तबियत खराब होने की एप्लीकेशन लगा कर आॅफिस से छुट्टी ले ली थी, इसलिये वह आज दिन चढ़ आने तक सो रहा था।
अचानक उसकी नींद टूटी, तो उसने देखा, कि उसकी भाभी रेशमा अपने बिस्तर पर बेसुध होकर सो रही है। उसके सीने से आंचल हट जाने के कारण ब्लाउज के अंदर उसके खिले हुए पुष्ट उरोज मानो उसे चुनौती दे रहे थे।
उसका भाई बाबू सिंह घर में कहीं नज़र नहीं आ रहा था। मस्तराम ने अनुमान लगा लिया था, कि वह अब तक आॅफिस जा चुका होगा। अचानक उसके होंठों पर कामुक मुस्कान उभर आयी। वह अपने बिस्तर से उठा और भाभी रेशमा की बगल मंे आकर लेट गया। उसके हाथ रेशमा के गुदाज जिस्म की पुष्ट गोलाइयों को टटोलने लगे।
रेशमा को अपने जिस्म के अंगों में किसी के स्पर्श का अहसास हुआ, तो उसकी आंखें खुल गईं।
उसने देखा, कि मस्तराम उसकी बगल में लेटा, उसके संवदेनशील अंगों के साथ कामुक छेड़छाड़ कर रहा था। इस पर वह बोली, ‘‘मेरे शैतान देवर जी, मुझे सोने दो।’’ वह कसमसाते हुए बोली, ‘‘क्यों परेशान कर रहे हो?’’ उसके हाथों को अपने अंगों से परे करते हुए बोली, ‘‘मुझे अभी छूने की जरूरत नहीं है।’’ वह अलसाई हुई बोली, ‘‘अभी मैं थोड़ी देर सोना चाहती हूं।’’
‘‘मेरी नींद हराम करके तुम सोना चाहती हो?’’ मस्तराम कामुक निगाहों से रेशमा के उरोजों को घूरते हुए बोला, ‘‘मैं भी देखता हूं, तुम कैसे सोती हो?’’ वह उसकी गोरी गदरायी जांघों पर हाथ फिराता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारे लिए मैंने आज आॅफिस से छुट्टी ली है और तुम नखरे दिखा रही हो?’’ वह रेशमा के बदन से लिपटते हुए बोला, ‘‘एक बार तुम मेरी बाहों में समा जाओ, फिर देखना तुम्हारी नींद कैसे काफूर होती है।’’
‘‘तुम मर्दों को न जरा भी सब्र नहीं होता।’’ विशेष अंदाज में आंखें मटकाते हुए बोली रेशमा, ‘‘मौका मिला नहीं, कि बिल्ली की तरह मलाई चाटने आ जाते हो।’’ वह करवट बदल कर सोने की चेष्टा करते हुए बोली, ‘‘चलो दूर हटो, इस वक्त मुझे बहुत जोरांे की नींद आ रही है।’’

 

लेकिन मस्तराम ने रेशमा की बात को अनसुना करते हुये उसके तन से एक-एक कर कपड़े हटाने शुरू कर दिये। फिर देखते ही देखते उसने रेशमा को सिर से लेकर पांव तक पूर्ण निर्वस्त्र कर डाला। अब रेशमा का संगमरमरी व तराशा हुआ जिस्म एकदम जन्मजात अवस्था में मस्तराम के समक्ष था।
रेशमा के निर्वस्त्र चिकने तन का दीदार होते ही मस्तराम के तन में आग भरने लगगी। पूरा बदन उत्तेजना के मारे ऐंठने लगा। मस्तराम रेशमा के गोरे उजले कबूतरों को अपने मुंह से पुचकारने लगा। मस्तराम के मुलायम जीभ का स्रुखद स्पर्श पाकर रेशमा की नींद एकदम से उचट गई। प्यार की मीठी आंच उसके तन-बदन में बेतहाशा सुलग उठी थी।
अब रेशमा को खुद पर काबू पाना मुश्किल हो गया था। वह अपना घुटना मस्तराम के जांघों से रगड़ने लगी। यह देख मन ही मन मुस्करा पड़ा मस्तराम। वह औरत के नस-नस से अच्छी तरह परिचित था।
वह समझ गया, कि रेशमा कामना के रथ पर सवार होकर प्यार के झूले में झूलने के लिये तड़प रही है। खुद उसका भी मन रेशमा के जिस्म को अपनी बाहों में भरकर उसके पोर-पोर को चटखाने के लिये बेचैन हो रहा था।
लेकिन वह आज रेशमा की देह रौंदने से पहले उसे इस कदर बेचैन कर देना चाहता था, कि आज रेशमा खुद पहल करने के लिये बेताब हो जाये। मस्तराम अपनी उत्तेजक हरकतों से रेशमा की सुप्त कामनाओं को भड़काता रहा। वह उसके संवेदशनशील अंगों को जहां-तहां सहलाते, चूमते व मौखिक स्पर्श देकर उत्तेजित करता रहा।
आखिरकार जब रेशमा के सब्र का बांध टूट गया, तब वह मस्तराम के उत्तेजित खास ‘वस्तू’ को प्यार से सलाहने और पुचकारने लगी। नारी के कोमल स्पर्श को महसूस करते ही मस्तराम के तन-बदन में चींटियां-सी रेंगने लगी। उसने जल्दी से अपने तन के बांकी कपड़े उतार फेंके और कामना के घोड़े के लगाम को हल्की-सी जुम्बिश देकर मैदान-ए-जंग में कूद पड़ा।
जैसे ही रेशमा ने मस्तराम के जोशीले ‘शैतान’ की गर्माहट को अपने तन के अंदर महसूस किया, वह किसी अमर बेल की लता की भांति उसके सीने से लिपट गई। उसने दोनों हाथों से मस्तराम की पीठ को मजबूती से जकड़ लिया। मानो वह उसे अपनी पूर्ण देह में समा लेना चाहती हो।
रेशमा के प्यार करने का आक्रामक अंदाज देखकर मस्तराम के होंठों पर मुस्कुराहट नृत्य करने लगी। धीरे-धीरे वह अपने प्यार करने की रफ्तार बढ़ाने लगा। रेशमा भी मस्ती के खेल में उससे पीछे कहां रहने वाली थी, अतः उसने भी अपनी कमर को मस्ती के आलम में जुम्बिश देना शुरू कर दिया।
प्यार का यह खेल काफी देर तक चलता रहा। दोनों इस खेल को ज्यादा से ज्यादा देर तक खींचना चाहते थे। लम्बी चढ़ाई के बाद जब मस्तराम का जिस्म पसीने-पसीने हो गया, तब उसने रेशमा के प्यासे होंठों का चुम्बन लेकर शरारती अंदाज में पूछा, ‘‘क्या विचार है मेरी जान? मैं तो आनंद के सागर में डूबने ही वाला हंू। अगर तुम कहो तो सरपट रेस लगा दूं?’’

 

‘‘मैं भी मंजिल के करीब पहुंचने ही वाली हूं।’’ वह मदहोशी के आलम मंे चूर होकर बोली, ‘‘ओह! जानू, बस ऐसे ही प्यार करते रहो, हाय! बहुत मजा आ रहा है।’’ अपनी बात खत्म करते ही रेशमा के मंुह से कामुक सीत्कारें निकलने लगीं।
रेशमा के होंठों से निकलती कामुक सीत्कारों ने मस्तराम को प्यार करने की रफ्तार तेज करने पर मजबूर कर दिया। प्यार की अनंत उंचाइयों पर पहुंच कर एकाएक मस्तराम की आंखें मंुदने लगी। उसे ऐसा लगा, जैसे वह खुले आसमान में उड़ने लगा हो।
ठीक यही हाल पसीने-पसीने हो चुकी रेशमा का भी हुआ। मंजिल के करीब पहुंच कर वह चरम आनंद के सागर में गोते लगाने लगी थी। उत्तेजना के अतिरेक में उसने अपने ऊपर झुके मस्तराम के जिस्म को पूरी ताकत से भींच लिया। मस्तराम ने भी आवेग में रेशमा के गुदाज जिस्म को पूरी ताकत से जकड़ कर उसके सेब के समान गालों को जोर से काट खाया।
चरम आनंद की प्राप्ति होने के बाद दोनों निढाल होकर हांफने लगे। रेशमा को मस्तराम ने वो जिस्मानी सुख दिया था, जो उसका पति बाबू सिंह नहीं दे पाता था। वह खुश व संतुष्टि भरी नजरों से अपने पे्रमी मस्तराम को देख रही थी। फिर वह अपने कपड़े समेटती हुई बिस्तर पर से उठी और बाथरूम की ओर बढ़ गई।
फ्रेश होने के बाद वह वापस कमरे में लौटी, तो उसने देखा कि तब भी मस्तराम निर्वस्त्रावस्था में मस्ती में आंखें मूंदे बिस्तर पर ही पड़ा था। तब रेशमा बोली, ‘‘ओहो जल्दी अपने कपड़े पहन लो।’’ वह बच्चों की ओर इशारा करती हुई बोली, ‘‘बच्चे जगने वाले हैं।’’
रेशमा की बात सुनकर मस्तराम उसकी ओर देखकर मुस्कुराया। फिर कपडे़ पहन कर अपने बिस्तर पर जाकर दोबारा सो गया।
बाबू सिंह, पुत्र बनी सिंह उत्तर-प्रदेश के अलीगढ़ जिला के अंर्तगत एक छोटे से गांव एकरी का रहने वाला था। वह पांच सालों से यहां अपने परिवार के साथ रहता था। उसका मौसेरा भाई मस्तराम निवासी महागौरा बेरोजगार था।
मौसा के बार-बार कहने पर बाबू सिंह ने उसे गांव से बुला कर अपने घर में रख लिया। मस्तराम की उम्र बीस साल थी। बाबू सिंह ने प्रयासों से उसकी नौकरी हंस भवन में लगा दी। बाबू सिंह शराब पीने का आदी था। दो बच्चों के बाप बाबू सिंह को बीवी से ज्यादा ‘अंगूर की बेटी’(शराब) से प्यार था।
जबकि उसकी बीवी रेशमा कामुक स्वाभव की खूबसूरत औरत थी। दो बच्चे होने के बाद बाबू सिंह ने अब उसकी उपेक्षा करनी शुरू की, तो वह अपनी अतृप्त वासना की आग को बुझाने के लिये तड़पने लगी।
बाबू सिंह के द्वारा बुलाये जाने पर उसका ममेरा भाई मस्तराम उसके घर में आकर रहने लगा। अपनी अतृप्त कामना को बुझाने के लिये रेशमा ने जानबूझ कर मस्तराम को अपने पुष्ट गोलाइयों के दर्शन कराना शुरू कर दिये। भाभी के गदराये व खिले अंगों के गुप्त दर्शन मात्रा से ही मस्तराम बुरी तरह उत्तेजित हो उठता था।
अलबत्ता वह भाभी की नजरें बचाकर उसके वस्त्रों के भीतर छिपे अंगों को अपने जेहन में निर्वस्त्रा रूप में महसूस कर उसे पाने की मन ही मन कल्पना करता रहता था। उधर रेशमा जानबूझ कर मस्तराम की भावनाओं को भड़काने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती थी।

एक दिन जब बाबू सिंह काम पर गया था और उसके बच्चे सो रहे थे। रेशमा नहा कर आई और मस्तराम से अपने ऊपरी बदन के आंतरिक वस्त्र का हुक लगाने के लियेे कहा। भाभी की बात सुनकर मस्तराम के बदन में वासना का करंट-सा दौड़ गया। उसे लगा कि भाभी भी वही चाहती है, जो वह चाहता है। यानी दोनों की एक-दूसरे के जिस्म से जी भरकर खेलना चाहते थे।
फिर मस्तराम ने भाभी के मन की बात टटोलनी चाहिए और उसके करीब जाकर उसके सख्त उभारों को ललचाई नजरों से घूरते हुए बोला, के लिये पूछा, ‘‘भाभी, तुम इन्हें पिंजरे में कैद क्यों रखती हो?’’
‘‘जब घर में मेरे बदन की सुध लेने वाला कोई है नहीं, तो ऐसे में मेरे ये दो मासूम बेचारे क्या करेंगे?’’ वह हताश भरे स्वर में बोली, ‘‘किसी को इनकी चिंता ही नहीं है, तो मैं क्या करूं?’’ वह जानबूझ कर स्वयं ही अपना एक हाथ अपने उरोजों पर ले जाते हुए बोली, ‘‘काश! इनकी कद्र करने वाला कोई होता।’’
‘‘भाभी तुम एक बार इशारा तो करो, मैं इन्हें इतना प्यार करूंगा, कि तुम भी याद करोगी।’’ मस्तराम उसकी आंखों में आंखें डालकर बोला।
‘‘नेकी और पूछ पूछ।’’ मुस्करा कर हौले से बोली रेशमा, ‘‘मेरी तरफ से तुम्हें पूरी छूट है।’’
रेशमा की बात सुनकर मस्तराम को लगा जैसे वह खुली आंखों से कोई सपना देख रहा हो। उसने रेशमा की आंखों में झांका, तो वहां उसे वासना का अथाह सागर लहराता दिखाई पड़ा।
भाभी की मौन स्वीकृति पाकर मस्तराम के बदन में अंगारे भरने लगे। उसने जल्दी से रेशमा को निर्वस्त्रा कर डाला और उसकी देह का जमकर लुत्फ उठाया। रेशमा ने भी जोशीले मस्तराम की बांहों में खुलकर मजा लिया।
रेशमा, मस्तराम के प्यार करने के आक्रामक अंदाज से बहुत खुश थी। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह प्यार के झूले में सवार होकर आसमान में उड़ रही हो। दोनों काफी देर तक एक-दूसरे की बांहों में कैद होकर प्यार की गर्माहट का मजा लूटते रहे। प्यार की मंजिल पर पहुंच कर रेशमा ने पूरी ताकत से मस्तराम को अपनी बांहों में भींच लिया।
उस दिन रेशमा को मस्तराम की बाहों में जो अभूतपूर्व सुख मिला, वह उसे अपने पति से कभी नहीं मिला था। इसके बाद तो दोनों को जब भी मौका मिलता, दोनों प्यार के इस वर्जित फल का आनंद लूट लेते थे।
बाबू सिंह ने जब देखा, कि उसकी बीवी रेशमा उसके ममेरे भाई मस्तराम का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखने लगी है, तो उसने मन ही मन महसूस किया, कि दाल में जरूर कुछ काला है। आजकल रेशमा के साथ प्यार के पलों के दौरान उसे वह गर्मजोशी भी नहीं दिखाती थी, जो वह पहले महसूस करता था।
अतः शक के आधार पर अब उसने रेशमा व मस्तराम पर गुप्त रूप से निगरानी रखनी शुरू कर दी और एक दिन उसका शक पूर्ण यकीन में बदल गया था।
उस रोज वह घर से काम पर जाने के लिये निकला था, मगर वह आॅफिस नहीं गया। दोपहर में वह अचानक घर लौट आया, तो देखा उसका कमरा अंदर से बंद था। उसने दरवाजे पर दस्तक दी, तो काफी देर दस्तक देने के बाद रेशमा ने दरवाजा खोला।
‘‘दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों लगा दी?’’ वह बीवी के चेहरे के बदले हुए हाव-भाव को पढ़ने की कोशिश करता हुआ बोला, ‘‘आखिर ऐसे कौन से काम में व्यस्त थीं तुम?’’

फिर रेशमा के जवाब की प्रतीक्ष किए बिना ही वह धड़धड़ाते हुये कमरे के अंदर प्रवेश कर गया। उसने देखा अंदर कमरे में मस्तराम नंग-धड़ंग अवस्था में लेटा हुआ था। बाबू सिंह को अचानक सामने देखकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया। मस्तराम और रेशमा को रंगे हाथों पकड़ने के बाद बाबू सिंह के तन-बदन में आग लग गई।
उसने मस्तराम को घर से निकाल दिया और रेशमा की जी भरकर पिटाई की। रेशमा ने बाबू सिंह के पैर पकड़ कर माफी मांगी। रेशमा के काफी देर गिड़गिड़ानेे के बाद बाबू सिंह दांत पीसता हुआ बोला, ‘‘आज के बाद कभी दोबारा ऐसी गलती की, तो जान से ही मार डालूंगा समझी।’’
बाबू सिंह ने रेशमा को माफ तो कर दिया था, मगर अब वह सर्तक रहने लगा था। उसे अपने परिवार की इज्जत नीलाम होने का भय था, अतः उसने सोचा कि अगर वह यहां से अपना कमरा बदल ले, तो उसका ममेरा भाई मस्तराम चाहकर भी रेशमा से नहीं मिल सकेगा और वह अपनी चिंता से भी निजात पा लेगा।

Antarvasna Sex Kahani मस्तराम के जोश में मस्त रेशमा

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यह विचार आते ही बाबू सिंह ने कोटला मुबारकपुर का कमरा छोड़ कर पिलंजी गांव में एक कमरा किराये पर ले लिया। उधर बाबू सिंह के द्वारा घर से निकाले जाने के बाद मस्तराम अपने बहन-बहनोई के घर सोनिया विहार में रहने लगा।
मस्तराम काफी समय से रेशमा से नहीं मिल पाने के कारण वासना की आग में जल रहा था। वह उसे अपनी बांहों में रौंदने के लिए मचला जा रहा था।
जब उससे अपनी बेकरारी बर्दाश्त नहीं हुई, तो वह रेशमा से मिलने पहुंच गया। दरअसल मस्तराम को जानकारी थी, कि रेशमा कोठियों में काम करने जाती है।
वह रेशमा से मिला और बोला, ‘‘मेरी जानेमन रेशमा।’’ वह ठंडी आंह भरता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारे बिना तो लगता है, मैं मर ही जाऊंगा।’’ वह कामुक नजरों से रेशमा के गदराये जिस्म को देखता हुआ बोला, ‘‘लगता है मेरे बेकाबू ‘शैतान’ को तुम्हारी देह के साथ शैतानी करने की आदत लग चुकी है।’’
रेशमा भी बेताब दिल से बोली, ‘‘मैं भी तुम्हारी शैतानी अपने जिस्म में बर्दाश्त करने के लिए मरी जा रही हूं।’’ फिर बुरा-सा मंुह बनाते हुए बोली, ‘‘मेरा पति का बदन तो फुस हुए गुब्बारे जैसा है। वह मुझे छूता है, तो लगता है, जैसे कोई नादान बच्चा शैतानी कर रहा है।’’ वह उसके करीब आकर बोली, ‘‘मगर जब तुम शैतानी करते हो, तो मेरा बदन भी शैतानी करने के लिए मचल उठता है।’’
‘‘ये बात है तो फिर चलो मेरे साथ।’’ वह उसका हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘आज हम दोनों अपनी प्यास बुझायेंगे।’’
‘‘मगर कहां ले जा रहो हो?’’ रेशमा थोड़ा हैरत से बोली।
‘‘मेरे दोस्त के घर।’’ मस्तराम ने बताया, ‘‘उसका घर खाली है। मैंने उससे बात करके मामला सेट कर लिया है।’’ वह मदहोशी भरे अंदाज में बोला, ‘‘आज तो तुम्हें जी भरकर…समझ गई?’’
‘‘हटो बेशर्म कहीं के।’’ मुस्करा कर इतना ही बोली रेशमा।
फिर कामना की मारी रेशमा ने पति को दिया वचन भूला कर अपने प्रेमी के संग रासलीला रचाने उसके दोस्त के घर पहुंच गई। मस्तराम महिनों के बाद रेशमा से मिला था। उसने रेशमा की सारी कसर एक बार में निकाल दी। जिस्मों की रगड़ा-रगड़ी में उसने रेशमा को इस तरह थका दिया, कि वह मस्तराम की पकड़ से छूटने के लिये छटपटा उठी।
मगर मस्तराम इतनी असानी से उसे कहां छोड़ने वाला था? उस दिन चार बार रेशमा के जिस्म पर उसने अपनी भड़ास निकाला। रेशमा का एक-एक अंग चटका कर रख दिया था उसने।
रेशमा भी मुस्करा कर नाराजगी भरे अंदाज में बोली, ‘‘इतने दिन क्या मेरी जुदाई में घी पकवान खा रहे थे? पागल सांड की तरह बावले हो गए थे। पूरी देह का भरता बना दिया तुमने।’’ वह मजाकिया भरे स्वर में बोली, ‘‘लगता है पहले से ही सोच रखा था, कि अपने बदन को घी-पकवान खा-खाकर कठोर कर लूंगा और मेरी देह की धज्जियां…।’’ इतना कहकर मुस्कराने लगी रेशमा।
‘‘नाराज क्यों हो रही हो जानेमन?’’ उसके उरोजों को एकाएक मसल कर बोला मस्तराम, ‘‘इतनी खूबसूरत और हुस्न से मालामाल प्रेमिका से इतने दिन दूर था, तो उसकी कीमत तो एक बार में ही वसूल करूंगा न?’’ फिर उसकी आंखों मंे आंखें डाल कर बोला, ‘‘वैसे सच बताना, तुम्हें भी खूब मजा आया न?’’
‘‘हर प्यासी औरत तुम जैसे मर्द की ही कल्पना सपनों में करती है मेरे जानू।’’ उससे लिपट कर बोली रेशमा, ‘‘जो बिस्तर पर अपनी घरवाली व प्रेमिका का जिस्म तरोड़-मरोड़ कर रख दे।’’ वह उसकी ओर देखकर बोली, ‘‘मेरा तो एक-एक अंग ऐसे तृप्त हो गया है, जैसे अब इन्हें साल भर तक किसी मर्द की प्यास न लगे।’’
‘‘ऐसा मत कहो मेरी जान।’’ शरारतपूर्ण अंदाज में बोला मस्तराम, ‘‘इन्हें प्यास नहीं लगी, तो मैं प्यासा मर जाऊंगा।’’ वह अपने खास ‘वस्तू’ की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘फिर मेरे शैतान का क्या होगा?’’ वह रेशमा के गुलाबी होंठों को चूमकर बोला, ‘‘ये तो तुम्हारी ‘देह’ के साथ शैतानी करने का आदी हो चुका है।’’
और फिर दोनों साथ में खिलखिला कर हंसने लगे। फिर बाद में रेशमा ने मस्तराम को बताया कि वे लोग आजकल पिलंजी गांव में रह रहे हैं। रेशमा से उसके घर का पता पूछ कर मस्तराम ने अपनी छोटी डायरी में नोट कर लिया।
देवर मस्तराम के संग रंगरलियां मनाने के बाद रेशमा खुशी-खुशी अपने घर लौट गई। मस्तराम ने अब बाबू सिंह के घर का पता जानने के बाद उसकी अनुपस्थिति में वहां भी आना शुरू कर दिया। बच्चों के मुंह से यह बात बाबू सिंह को पता लग गई। मस्तराम की बढ़ती हिम्मत देखकर बाबू सिंह का खून खौल उठा।

एक दिन वह मस्तराम को धमकी देने उसके बहनोई के घर सोनिया विहार जा पहुंचा। मस्तराम को देखते ही बाबू सिंह गुस्से में भरकर चीखा, ‘‘अगर तुमने रेशमा से आइंदा मिलने की कोशिश की तो तुझे काट कर तुम्हारा मांस चील कौवों को खिला दूंगा।’’
बाबू सिंह के डर से मस्तराम अंदर कमरे में जाकर छिप गया। उसके बहनोई के द्वारा बीच बचाव करने से किसी तरह मामला शांत हुआ। बाबू सिंह उसे बुरा भला कहकर पैर पटकता हुआ अपने घर लौट आया।
बाबू सिंह की धमकी से बेतहाशा घबरा गया मस्तराम। उसे अब अपनी जान की चिंता सताने लगी। मगर वह अपनी प्रेमिका रेशमा से भी दूर नहीं रह सकता था। अतः उसने बाबू सिंह को ही जान से खत्म कर देने की मन ही मन में ठान ली और योजना बनाने लगा।
बाबू सिंह का काम तमाम करने के लिये मस्तराम ने अपने जिगरी दोस्त दिनेश पुत्रा रणवीर को बहन की शादी का समान खरीदने के बहाने गांव से दिल्ली बुला लिया। मस्तराम ने लालच देकर दिनेश को बाबू सिंह की हत्या की योजना में शामिल होने के लिये राजी कर लिया।
एक दिन दिनेश ने बाबू सिंह को बहाने से अपने पास बुलाया और कहा ‘‘मस्तराम अपनी गलती के लिये उससे माफी मांगना चाहता है। उसे माफ कर दो।’’
बाबू सिंह दिल का साफ आदमी था। उसने समझा मस्तराम को शायद वाकई अपनी गलती का पश्चाताप हो रहा होगा। अतः उसने मस्तराम और दिनेश दोनों को अपने घर में बुला लिया। बाबू सिंह के बुलाने पर रात को मस्तराम, दिनेश के साथ बाबू सिंह के पिलंजी स्थित किराये के कमरे में पहुंचा।
दोबारा दोस्ती होने की खुशी का दिखावा करते हुये मस्तराम ने अपनी पे्रमिका रेशमा के पति बाबू सिंह को शराब पीने की दावत दी। शराब बाबू सिंह की सबसे बड़ी कमजोरी थी। शराब की दावत मिलने पर बाबू सिंह खतरा नहीं भंाप सका। वह बिना कुछ सोचे-समझे मस्तराम और दिनेश के साथ शराब पीने के लिये घर से बाहर निकल गया।
वहां से तीनों एक साथ शराब के ठेके पर पहंुचे। मस्तराम ने शराब की बोतलें खरीदी। तीनों ने एक पार्क में जाकर नमकीन के साथ शराब पीना शुरू किया। बोतल के खत्म होते ही बाबू सिंह के ऊपर नशा हावी होने लगा। मस्तराम दोबारा ठेके पर पहंुचा और शराब की कुछ बोतलें खरीद लाया। दिनेश लड़खड़ाते बाबू सिंह को सहारा देकर पास के एक कमरे में ले गया।
यह कमरा मस्तराम ने उसी दिन अपने लिये किराये पर लिया था। तीनों वहां बैठ गये। नमकीन और शराब की बोतलें बीच में रख दी गईं। शराब का दौर शुरू हुआ, तो दोनों ने खुद कम पी, मगर बाबू सिंह को इतना अधिक पिला दिया कि उसे अपना होश नहीं रहा। बाबू सिंह बेसुध होकर फर्श पर लेट गया।
मस्तराम ने बाबू सिंह को शराब के नशे में बेहोश देखकर दिनेश को आंखों ही आंखों में उसका काम तमाम करने का इशारा किया। दिनेश ने उसके इशारे का मतलब समझ कर बाबू सिंह को दबोच लिया। तभी मस्तराम ने अपने रूमाल का फंदा बनाकर उसका गला घोंट दिया।

बाबू सिंह की हत्या के बाद आरोपियों ने बाबू की लाश को सुबह-सुबह ठिकाने लगा दिया। वह सोच रहे थे कि उन्होंने इस कांड को किस तरह अंजाम दिया है कि वह कानून के शिंकजे में कभी नहीं आ सकते। मगर न तो कोई अपराधी कानून की पैनी निगाहों से बच सका है और न ही बच सकता है।
ये आरोपीजन भी पुलिस की गिरफ्त में आ ही गये और सलाखों के पीछे अपने गुनाहों को सजा भुगतने लगे।
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।

1 Comment

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  1. Mujjhe ek chut chahie mera last bahut khada hota hai aap chut ki bewastha keep pls……
    In Mumbai for Continue pls….

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