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हवस की मारी सविता Sex Stories

हवस की मारी सविता Sex Stories

दोगुनी उम्र का अंतर होने के बावजूद भी दोनों एक-दूसरे के साथ हंसी-खुशी से दिन गुजार रहे थे।
बात उन दिनों की है, जब सविता 14 साल की थी। 14 बरस की सविता के रूप यौवन में ऐसा निखार आया, कि लगता था मानों वो 17 सावन पार कर चुकी होगी। उसके शबाब की खुशबू इलाके के सारे मनचलों तक पफैल चुकी थी, तो हर कोई उसके आगे-पीछे भंवरों की मंडराने लगा। आशिक उसका दीदार करने के लिए घर के आसपास चक्कर लगाने लगे, ताकि उन्हें सविता के बेमिसाल हुस्न की एक झलक मिल जाये।
सविता भी अपने दीवानों की कतार देखकर खुश होती थी। उसे अपने रूप यौवन पर नाज़ होने लगा कि ‘मेरे चाहने वालों की इतनी लंबी कतार है’ हर कोई सविता को अपने साथ घुमाने-पिफराने के लिए ले जाने का अरमाना पालने लगा।
सविता अब अपने चाहने वालों के साथ घूमने-पिफरने लगी। जिस कारण वह उनके साथ इतना घुलमिल गई, कि उन्हें हर प्रकार का प्यार सौंपने लगी। इसके चलते अब मनचले युवक उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाने लगे।
इस खेल में सविता को आनंद तो आता था, मगर वो उम्र की नादानी के कारण आने वाले दुष्परिणामों की आहट को नहीं सुन रही थी या सुनना नहीं चाहती थी।
जब पानी सिर से उफपर जाने लगा, तो ये बातेें गांव में जंगल की आग की तरह से पफैलने लगीं। लोग उसके माता-पिता से आकर कहते, लेकिन सविता इस सभी बातों को झूठी अपफवाह कहकर टाल जाती थी।
आशिकों और मनचलों की लिस्ट में सविता का एक चाहने वाला और शामिल हो गया था, जिसका नाम था सुरेश।
एक दिन जब सुरेश, सविता से अकेले में मिला, तो उसने उसके सामने प्रेम प्रस्ताव रखकर कहा, फ्सविता मैं जानता हूं, कि तुमको प्यार में कामसुख कई लड़कों ने दिया है। लेकिन जो कमाल का सुख मैं दूंगा, वो कोई नहीं दे सकता।य्
सविता ने सुरेश के प्रस्ताव को इसलिए मना कर दिया था, क्योंकि सुरेश उम्र में उससे कापफी बड़ा था, लेकिन सुरेश ने उसे यकीन दिलाया कि ज्यादा उम्र के आदमी में क्षमता भी अधिक होगी, तो सविता मना नहीं कर सकी और वो सुरेश की बाहों में समाने के लिए राजी हो गई…
सविता की ओर से हरी झंडी मिलते ही तपाक से सुरेश ने सविता को कसकर बांहों में भरा और जोरदार चुम्बन उसके गुलाबी अध्रों में जड़ दिया। सविता ने भी चुम्बन का जवाब लगातार कई चुम्बन देकर दिया।
पिफर तो सुरेश पूरी तरह जोश में आ गया। उसने वस्त्रा के ऊपर से ही सविता के कबूतरों को सहलाना व पुचकारना शुरू कर दिया। पिफर ध्ीरे-ध्ीरे उसके हाथ सविता के वस्त्रों के अंदर उसके भूगोल को टटोलने लगे। सविता भी मदमस्त हो गई और आंखें भी स्वतः ही मस्ती में मंुदने लगी…

 

फ्ओह सुरेश तुमने मेरे अंदर की चिंगारी को इस कदर भड़का दिया है, कि अब ये ज्वालामुख का रूप ले चुकी है। जल्दी ही इसे अपने प्यार की बौछार से शीतल कर दो। वरना मैं अपनी ही कामाग्नि में जलकर राख हो जाऊंगी।य्
फ्जानेमन तुम इस कदर मतवाली और दीवानी हो रही हो, जैसे आज मुझे पूरा ही निगल जाओगी।य् सुरेश उसके नितम्बों पर हाथ पिफराता हुआ बोला, फ्जरा सब्र रखो, पहले मैं तुम्हारी हर चीज का स्पर्श कर मुआयना तो कर लाूं, कि किस-किस अंग में कितनी मादकता भरी हुई है।य् कहते हुए सुरेश जहां-तहां सविता को स्पर्श करने लगा और सहलाने चुमने लगा।
पिफर देखते ही देखते दोनों निर्वस्त्रा होकर एक-दूसरे में गुंथ गये…
फ्सुरेश… ओ जानू।य् सुरेश के अध्रों पर अपने अध्र रखकर बोली सविता, फ्तुम्हारे प्यार की चक्की में पिसकर मजा आ रहा है। अच्छे से पीस डालो आज। जरा और तेज चलाओ न चक्की, ताकि आटा जल्दी पीस जाये।य्
इतना कहना था कि सुरेश ने वाकई अपने चक्की की गति बढ़ा दी…
फ्स…ओह… मेरी रानी।य् गतिमान होते हुए बोला सुरेश, फ्वाकई तुम्हें पीसकर लगा रहा है, जैसे एकदम नया और ताजा आटा पीस रहा हूं। एकदम मक्खन हो तुम मक्खन।य्
फ्तो पिफर इस मक्खन को जल्दी से पिघला दो न।य् सविता बेतहाशा मादक सिसकियां भरते हुए बोली।
पिफर तो सुरेश ने ऐसे-ऐसे जलवे दिखाये प्यार के कि सविता तो उसके जोश की कायल ही हो गई। सुरेश के साथ पहली बार संबंध बनाते ही सविता उसकी दीवानी हो गई। अब उसने दूसरे लड़कों को अपने पास पफटकने भी नहीं दिया और अपने दिल से निकाल पफेंका।
सविता के इस बर्ताव से उसके चाहने वाले आहत तो हुए, लेकिन क्या कर सकते थे? दिल ही दिल में सुरेश से जलने लगे।
सविता और सुरेश के संबंधों को एक वर्ष हो गया था। अब तक सविता 15 बरस की हो गई थी। एकाएक न जाने उसकी समझ में ये कहां से आ गया, कि सुरेश और उसके बीच जो शारीरिक संबंध बनते हैं, वो सिपर्फ शादी के बाद ही कायम होते हैं। उससे पहले ये सब समाज व परिवार की नजरों में बुरा कहलाया जाता है।
इतनी समझ आने पर सविता ने सुरेश को अपने करीब नहीं आने दिया। लेकिन सुरेश था, कि सविता से एक पल की भी दूरी नहीं सह सकता था। वह अब सविता को हर हाल में पाने के लिए मचल उठा। अपनी दीवानगी का सविता को एहसास करा कर दोनों ने शादी करने का पक्का पफैसला कर लिया।
मगर सुरेश के घरवालों ने सविता को अपने घर की बहू बनाने से इंकार कर दिया, क्योंकि वो लोग भी सविता की हरकतों से अच्छी तरह वाकिपफ थे। लेकिन सुरेश नहीं माना। उसने अपने घर वालों से सापफ शब्दों में कह दिया, फ्अगर सविता के साथ मेरी शादी नहीं हुई, तो मैं आत्महत्या कर लूंगा।य्
पिफर बेटे की जिद व उसकी खुशी की खातिर सुरेश के पिता ने सविता के साथ उसकी शादी कर दी। सुरेश और सविता एक-दूसरेे को पाकर बहुत खुश थे। उनकी जिंदगी अब सुख से बीतने लगी। दोनों परिवार एक-दूसरे के पड़ोसी थे। सविता अब सुधर चुकी थी।
सुरेश के पिता के पास नौ सौ बीघा जमीन थी। अपनी उसी जमीन पर वो खेती करता और उसकी आमद से परिवार का भरण-पोषण चलने लगा। सुरेश भी अपने पिता के साथ खेती के काम-काज में हाथ बंटाने लगा था।
इस तरह से आराम से जीवन बीत रहा था और इसी दौरान सविता चार बार गर्भवती हुई और दो बेटी और दो बेटों को उसने जन्म दिया।
परिवार बढ़ा और सुरेश पर जिम्मेदारियां भी बढ़ गईं। खेती के काम से पूरे परिवार का खर्च नहीं चल सकता था, अतः सुरेश ने कुछ और काम भी करने का निश्चय किया, ताकि परिवार का भरण-पोषण ठीक प्रकार से हो सके।
यही सब सोचकर सुरेश दिल्ली आ गया और दिलशाद गार्डन में उसने कबाड़ी का काम शुरू कर दिया। कबाड़ी का काम नाम से छोटा और मेहनत भी बहुत ज्यादा थी। लेकिन मेहनत रंग ले आयेगी और इस काम में सबसे अधिक कमाई होगी, ये बात सुरेश के दिमाग में ठीक प्रकार से समझ में आ चुकी थी।
सुरेश ने खूब दिल लगाकर मेहनत की। उसने दिन-रात एक कर दिया और ऐसे में उसकी मेहनत रंग लाई और उसकी कमाई होने लगी। वो अपनी जरूरत का पैसा पास अपने पास रखता और बाकी का पैसा गांव भेज देता था। इसी तरह करते-करते कई साल गुजर गये, सुरेश ने कमाई से कापफी पैसा भी जमा कर लिया था।
पैसा जमा हो गया, तो सुरेश ने एक जनता फ्रलैट खरीद लिया और अपने परिवार को लाने के लिए गांव पहुंच गया। लेकिन सुरेश के पिता ने दिल्ली आने से मना कर दिया, क्योंकि वो गांव में रहकर खेती का काम संभालना चाहते थे, अतः सुरेश पत्नी सविता और चारों बच्चों को साथ लेकर दिल्ली आ गया।
सुरेश अब पत्नी और बच्चों के साथ दिल्ली में एक फ्रलैट में रहने लगा। सब कुछ ठीक तरह से चल रहा था। उसने अपने बच्चों का एडमिशन एक अच्छे स्कूल में करवा दिया था।
समय गुजरता जा रहा था…
अब सुरेश को लगने लगा, कि कबाड़ी के काम में उसने पैसा तो खूब कमा लिया, लेकिन ज्यादा इज्जत नहीं कमा सका। अगर इसी तरह से कबाड़ी काम करता रहूंगा, तो भविष्य में बच्चों की शादी अच्छे और बड़े घरों में कैसे कर पायेगा? अतः सुरेश ने कबाड़ी का काम छोड़ दिया और अब उसने स्टील वर्कस का काम शुरू कर दिया था। ये काम उसका खुद का था।
स्टील के काम में भी सुरेश ने दिल लगाकर मेहनत की और यहां भी उसकी मेहनत रंग लाई। अब उसके पास सब कुछ था। रुपया पैसा गाड़ी सारे सुख सुविधा के सामान सुरेश ने जोड़ लिये थे। दिनरात मेहनत करता और रात को अच्छी नींद सोता था वह।
सुरेश को कभी-कभार लगने लगता कि, ‘काश! उसके पिता भी गांव से आ जाते, तो उसका रहन-सहन देखकर बहुत खुश होते।’
एक बार वो गांव गया और उसने पिता से दिल्ली साथ चलने के लिए कहा, लेकिन सुरेश के पिता ने इस बार भी दिल्ली आने से मना कर दिया, तो सुरेश ने खेती के काम में पिता का हाथ बंटाने के लिए उनके साथ एक नौकर रख दिया।
हाथ बंटाने के लिए सुरेश ने जिस नौकर को रखा था, उसका नाम रमन था। वो सुरेश के पिता के साथ उनके खेत का पूरा काम संभालने लगा।
वक्त गुजरने लगा…
बीच-बीच में वक्त निकाल कर सुरेश अपने पिता के पास भी मिलने के लिए गांव चला जाता था।
काम बढ़ने से सुरेश की व्यस्तता बढ़ती जा रही थी, जिसके तहत वह पत्नी सविता को कम वक्त दे पाता था। अब तक सविता 30 बरस की हो गई थी और सुरेश अब 45 साल का था। दिनभर के काम से सुरेश घर आता और खाना खाकर बिस्तर पर लेटते ही वो सो जाता था।
इस सबके कारण सविता के दिल में ये ख्याल सिर उठाने लगा था, कि अब पति उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। रातभर बिस्तर पर सविता करवटें बदलती रहती, तो अगले दिन उसके सिर में दर्द हो जाता। इस कारण से वो सारे दिन नाराज और चिढ़-चिढ़ी सी बनी रहती।
सविता को लगने लगा, कि पति उसके अरमानों को हवा देने के लायक नहीं रहा। वो चूंकि उम्र में बड़ा है, इसलिए थक जाता है, अतः यही बातें सविता को सिर उठाने के लिए मजबूर करने लगीं, तो उसने अपनी पूर्ति का साधन बाहर तलाशना शुरू कर दिया।
सविता के चारों बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्यूशन मास्टर प्रताप घर पर ही आता था। एक दिन न जाने सविता को क्या सूझी, ट्यूशन मास्टर यानी प्रताप को देखकर उसने मादक अंगड़ाइयां लेनी शुरू कर दीं। ये देख ट्यूटर पहले तो चैंका, पिफर नारी की तरपफ से मिल रहे खुले आमंत्राण को वो ठुकरा नहीं सका।
सविता को प्रताप हर तरह से अपने योग्य लगा, तो वो भी उसकी बाहों में समाने के लिए मचल उठी।
आखिरकार सविता ने अपने प्यार की मस्त अदाओं से ट्यूटर को भी अपने शीशे में उतार लिया और एक रोज जब वह सविता के घर बच्चों को पढ़ाने आया, तो उसने बच्चों को बहलाते हुए कहा, फ्बच्चों जरा मास्टर जी से मैं तुम्हारी पिफस के बारे में कुछ चर्चा करना चाहती हूं, तुम लोग बैठो मैं और मास्टर जी दूसरे कमरे में जा रहे हैं। वहीं कमरे में आलमारी के अंदर पैसे भी रखें है, जो मैं मास्टर जी को दे दूंगी।य्
दूसरे कमरे में आते ही सविता ने अंदर दरवाजा लाॅक किया और मास्टर की आंखों में देखकर बेकरार होती हुई बोली…
फ्पढ़ाई की मास्टरी तो की है तुमने, मगर क्या कभी किसी नारी के हुस्न की किताब खोलकर उसकी मास्टरी की है तुमने?य्
कहकर सविता ने सीने से अपना पल्लू गिरा दिया, जिस कारण उसके कठोर कबूतर वस्त्रों में आकार के रूप में गजब ढा रहे थे। वह मास्टर के करीब आकर बोली, फ्मेरे पास दो स्टूडेन्ट और हैं, जो न जाने कब से मास्टर जी के हाथ का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, क्या इन्हें छूकर आशीर्वाद नहीं दोगे?य्
सविता के मुख से ऐसा सुनकर मास्टर के दिल का हथौड़ा जोर-जोर से चोट मारने लगा। पिफर भी वह थोड़ा झिझक कर बोला, फ्मगर..य्
फ्श्!…श्..य् बीच में ही मास्टर की बात काटते हुए सविता ने मास्टर के होंठो पर अंगुलि रख दी, फ्देखो ये अगर…मगर के चक्कर में न पड़ो। बच्चे बगल के कमरे में ही हैं… वक्त बेकार मत करो और जल्दी से अपनी ‘कलम’ से मेरी सूखी ‘तख्ती’ पर अपनी स्याही को अंकित कर दो।य्

 

पिफर क्या था देखते ही देखतें दोनों जल्दी से निर्वस्त्र हो गये और मास्टर ने वहीं बिस्तर सविता को पटक दिया और पागलों की तरह सविता के गोरे निर्वस्त्रा अंगों को जहां-तहां चूमने-चाटने लगा…
सविता भी कामोत्तेजना में जलने लगी। वह अपने ऊपर झुके मास्टर की पीठ पर नाखुन गड़ाते हुए बोली, फ्जल्दी और तेज-तेज अपनी कलम चलाओ, कि मेरी तख्ती तुम्हारे कलम की स्याही से ऐसे भर जाये, कि स्याही कई जन्मों तक सूखने न पाये।य्
फ्जल्दी का काम शैतान का होता है मेरी जान।य् मास्टर उसकी गोरी जांघों को सहलाता हुआ बोला, फ्और हम दोनों शैतान नहीं हैं, प्यासें हैं… दीवाने हैं एक-दूसरे के प्यार के लिए… शरीर के लिए।य्
पिफर बुरी तरह आंदोलित होता हुआ बोला, फ्ये लो तुम्हारे कहेनुसार ही तेज-तेज नाव चला रहा हूं तुम्हारी भीगी नदिया में। अब तो खुश हो न मेरी जान।य्
फ्अपने नाव की पतवार को मेरी नदियां में अंदर तक प्रवेश करवा कर थोड़ा और तेजी से चलाओ नाव को।य् वह मादक स्वर में मास्टर के कान के पास पफुसपफुसाते हुए बोली, फ्समझ रहे हो न ‘नाव’ क्या है और ‘नदिया’ क्या है…?य्
फ्ये लो छू कर देखो ‘नाव’ को।य् कहकर मास्टर ने नदिया से नाव को निकाला और सविता के हाथों में थमा दी, फ्इसे थोड़ा पुचकार लो ये नाव अभी थोड़ा प्यार और स्नेह चाहती है। ताकि इसे थोड़ा आराम मिले, पिफर ये पूर्ण जोश में आकर अपनी पतवार से नाव को तुम्हारी नदियां के दोनों किनारों पर लगा सके।य्
सविता स्मार्ट थी, अतः मास्टर के कहने का अभिपार्य भांप गई। पिफर क्या था, मस्त तरीके से सविता, मास्टर की नाव को मौखिक दुलार देकर पुचकारने लगी। अब नाव पुनः नदी में उतरने को तैयार थी।य्
फ्मास्टर जी…अब जल्दी से अपनी नाव को मेरी नदियां में उतार कर किनारे तक पहुंचों और मेरी मंजिल तक पहुंचाओ।य्
पिफर मास्टर ने सविता की चाहत को पूरा किया, तो वो निहाल हो गई और मास्टर की दीवानी हो गई। बच्चों को पढ़ाने आने वाला मास्टर अब सविता के खिले बदन की इबारत भी पढ़ रहा था।
सविता अब उसकी दीवानी हो चुकी थी। उसका रूझान अब पति की तरपफ नहीं था, क्योंकि उसे समझ में आ गया था, कि प्रताप ने उसे जो शारीरिक सुख दिया है, वो खुद उसका पति नहीं दे सकता।
अब सविता और ट्यूटर यानी प्रताप के बीच हर रोज ही शारीरिक-संबंध बनने लगे थे। एक दिन सविता ने उससे कहा, फ्हम दोनों इस तरह से डर-डर कर प्यार करते हैं। क्यों न हम शादी कर लें?य्
फ्चाहता तो मैं भी यही हूं, लेकिन ये कैसे हो सकता है? तुम्हारे पति को ऐतराज होगा और पिफर तुम चार बच्चों की मां भी हो।य् ट्यूटर प्रताप ने कहा।
फ्क्यों जब मेरे बदन की सुगंध ले रहे थे, तब ये ख्याल नहीं आया, कि मै शादीशुदा और चार बच्चों की मां भी हूं?य् सविता ने गुस्से से पफुंकार कर कहा।
फ्अरे तुम तो बुरा मान गईं। मैं तो इसलिये कह रहा था, कि हम दोनों शादी कैसे कर सकते हैं? तुम्हारा पति और बच्चे इस काम में सबसे बड़ी रूकावट हैं।य् ट्यूशन मास्टर ने कहा।
फ्तो कोई बात नहीं, मैं इस रूकावट की परवाह नहीं करूंगी।य् सविता उसकी आंखों में झांक कर बोली, फ्लेकिन तुम ये बताओ, कहीं मेरा साथ तो नहीं छोड़ दोगे?य्
एक दिन मौका पाकर सविता बच्चों के ट्यूटर के साथ अपने पति का घर छोड़कर भाग गई। उसके बाद उसने कभी पलट कर अपने पति और बच्चों की खबर तक नहीं ली।
अपनी पत्नी की इस बेवपफाई को सुरेश बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने कभी सोचा भी नहीं था, कि सविता जीवन के बीच में ही उसका साथ छोड़कर चली जायेगी। पिफर उसे लगा, फ्क्यों नहीं कर सकती…? आखिर बचपन में जो गुल उसने खिलाये हैं, उन्हीं पर दोबारा चलने लगी।य्
बहरहाल अब सुरेश ही अपने चारों बच्चों के लिए उनकी मां और पिता दोनों का ही पफर्ज निभा रहा था। बीच-बीच में सविता को भी तलाश रहा था। इसी तरह करीब पांच महीने का वक्त गुजर गया।
एक दिन किसी माध्यम से सुरेश को पता चला, कि इन दिनों उसकी पत्नी सविता, अपने प्रेमी के साथ पंजाब मंें रह रही है। पत्नी को वापस घर लाने के लिए सुरेश पंजाब गया और जैसे-तैसे कर कापफी मुश्किल से वो सविता को वापिस दिल्ली ले आया।
सविता को वापिस ले आने के बाद अब सुरेश को उस पर यकीन नहीं था। वो इस बात को अच्छी तरह से समझता था, कि जो औरत अपने पति व बच्चों को छोड़कर किसी गैर मर्द के साथ भाग सकती है, वह दोबारा भविष्य में कभी भी ऐसा करने से पीछे नहीं हटेगी।
अतः सुरेश अब सविता की गतिविधियों पर नजर रखने लगा था। वो अगर किसी से जरा देर बात भी कर लेती, तो सुरेश को उस पर शक हो जाता, इसीलिए सुरेश ने तय किया, कि अब वो सविता को अपने गांव पिता के पास छोड़ आयेगा।
यही सब सोचकर सुरेश एक दिन सविता को गांव छोड़ आया। वहां वो खेती का काम देखने लगी। अब सुरेश को लगने लगा, कि पिता की देखरेख में सविता कोई गलत काम नहीं करेगी।
चार बच्चों को जन्म देने के बाद भी सविता के व्यवहार और कामाग्निी में रत्ति भर भी कमी नहीं आयी थी। उसके अरमान अब भी पहले जैसे ही थे। ऐसे में चिंगारी को घी देने की जरूरत पड़ती है, तो पिफर आग खुद-ब-खुद भड़क उठती है।
ऐसा ही हुआ… एक दिन जब उसके ससुर खेत पर गये थे, तो वहीं से उन्होंने अपने नौकर रमन से कहा, फ्आज मैं शाम तक घर जाउफंगा, तू घर जा और मेरा खाना यहीं खेत पर ले आ।य्
ससुर की बात मानकर रमन खाना लेने के लिए घर पर चला गया। दोपहर का वक्त था। घर का काम-काज निपटा कर सविता आराम करने के लिए लेट गई थी। तभी दरवाजे पर दस्तक की आवाज आई, तो उसने सोचा, कि शायद ससुर जी खाना खाने आये हैं।
दरवाजा खोला तो सामने नौकर रमन था। एक पल के लिए सविता उसे निहारती रही। पिफर उसने आहिस्ते से मुस्कुरा कर कहा, फ्अंदर आओ।य् रमन आया तो सविता ने अंदर से दरवाजे बंद कर लिये।
फ्भाभी जी मालिक ने यानी आपके ससुर ने खेत पर ही खाना मंगवाया है, इसलिए मैं आया हूं।य् रमन ने कहा।
सविता ने रमन की बात का जवाब नहीं दिया। बस मुस्कुराकर उसकी तरपफ देख रही थी, जबकि रमन बार-बार अपनी निगाहें नीची कर लेता।
पिफर सविता ने कहा, फ्तुम शर्मिले बहुत हो। कभी किसी औरत से बात नहीं करते, क्यों सच कहा न मैंने?य्
फ्जी ऐसी बात नहीं है, मैं औरतों से बात करता हूं लेकिन…य् रमन ने अपनी बात बीच में ही रोक दी।
फ्तो पिफर मेरी तरपफ देखकर शरम से आंखें क्यों जमीन पर गड़ाये जा रहे हो? मुझसे डर लगता है क्या या पिफर मैं देखने में भयंकर लगती हूं?य् सविता ने रमन की ओर मादक निगाहों से देखकर कहा।
फ्नहीं भाभी जी ऐसी बात नहीं है।य्
रमन आगे कुछ कहता, लेकिन सविता ने उसे बीच में ही टोक दिया, फ्ये भाभी जी भाभी जी क्या लगा रखा है? मैं किसी की कोई भाभी नहीं हूं। मेरा नाम सविता है, तुम मुझे इसी नाम से बुलाओ मुझे अच्छा लगेगा।य्
फ्जी अच्छा।य् रमन ने कहा और खाने का डिब्बा लेकर जाने लगा।
तभी सविता ने उसे रोक कर कहा, फ्खाना देकर आना, तुमसे कुछ जरूरी काम है। लेकिन हां, मालिक यानी मेरे ससुर को ये नहीं बताना कि मैंने तुमको बुलाया है समझे।य्
अब भी सविता की निगाहों में शोखी थी, जिसे देखकर रमन ने निगाहें झुका लीं पिफर वो वहां से चला गया।
फ्जी, नहीं बताउफंगा।य् कहकर रमन ने सिर हिला दिया और वहां से चला गया।
सविता समझ गई, कि तीर निशाने पर ही लगा है। उसे यकीन था, कि रमन जरूर आयेगा, क्योंकि वो अच्छी तरह समझ गया था, कि उसकी मालकिन क्या खास ‘काम’ करवाना चाहती है?

रमन भी रास्ते में सोचते-सोचते जा रहा था, उसे पता भी नहीं चला कि वो कब खेत पर पहुंच गया…
रमन के दिल में भी सैकड़ों पफुलझड़ियां छूट रही थीं। वो जल्द से जल्द सविता के पास वापस आने के लिए आतुर हो रहा था। उसके बदन में सैकड़ों बिच्छू डंक मार रहे थे, जिससे उसे एक अजीब गुदगुदी का एहसास हो रहा था।
खेत पर मालिक से किसी जरूरी काम पर जाने के लिए कहकर, वो दो घंटे के लिए चला गया और तेज-तेज कदमों से सविता के पास घर पहुंच गया। दस्तक की आवाज सुनकर सविता समझ गई, कि रमन ही होगा वो सजी-संवरी उसी का इंतजार कर रही थी।
दरवाजे पर रमन हांपफ रहा था, फ्भागकर आये हो क्या?य् सविता ने हंसते हुए कहा।
रमन बोला तो कुछ नहीं, लेकिन प्रत्युत्तर में वह मुस्कुरा दिया।
सविता बातें करते-करते पलंग पर लेट गई। रमन सामने खड़ा था। उसने कहा, फ्आपको मुझसे क्या काम था?य्
फ्कोई बड़ा काम नहीं था। मेरी पीठ दर्द कर रही थी, मालिश करवानी है।य् वह होंठों पर जीभ पिफराती हुई बोली, फ्कर दोगे न अच्छे से मालिश।य् वह मादक स्वर में बोली, फ्औरत की मालिश करनी आती है न? या पिफर मैं समझाऊं..?य्
रमन कोई नादान बच्चा नहीं था। वो तो पहले ही सविता की मंशा को समझ गया था, अतः वह भी खुलकर बोला, फ्पीठ तो क्या, जहां कहोगी वहां मल दूंगा।य्
फ्अरे वाह!य् कातिल मुस्कान होंठों पर बिखेर कर बोली सविता, फ्सही जा रहे हो मेरे प्यारे। तुम तो बड़े मनचले निकले, मैं तो खामखांह तुम्हें लल्लू समझ रही थी।य्
फ्लल्लू तो बाहर वालों के लिए केवल दिखावे के लिए हूं।य् वह सविता के करीब आते हुए बोला, फ्तुम्हारे लिये तो शेर हूं, एक शिकारी शेर, जो इस वक्त अपना शिकार बिस्तर पर देखकर शिकार पर झपटने के लिए बेताब है।य्
पिफर रमन भी सविता के करीब पलंग पर आकर बैठ गया और अब वो खुद ही सविता की पीठ पर हाथ पफेर रहा था। एक पल के लिए सविता को अजीब लगा, लेकिन पिफर वो मन ही मन सोच रही थी कि ‘मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।’
रमन का हाथ अब सविता की पीठ को सहला रहा था। थोड़ी देर में ही वो सविता पर छा गया, तो दोनों का खुद पर काबू नहीं था।
उस दिन के बाद रमन और सविता को जब भी मौका मिलता, तो दोनों एक-दूजे की बाहों में समा जाते। रमन भी सविता की देह का दीवाना हो चुका था और जब मर्जी सविता की हसरतों का साथी बनने के लिए चला आता था।
आखिर पापलीला अधिक समय तक नहीं छिप सकी। सविता के ससुर को गांव वालों ने उन दोनों के संबंधों के बारे में बता दिया, तो ससुर ने अपने बेटे सुरेश को दिल्ली पफोन करके सारी बात बता दी। अगले ही दिन सुबह सुरेश गांव पहुंच गया।
घर आकर सुरेश ने पहले तो सविता की जी भरकर पिटाई की। उसके बाद उसने रमन को नौकरी से निकाल दिया। सुरेश चार-पांच दिन गांव में ही रहा और हर रोज वह सविता की पिटाई करता था। दरअसल सविता भी किसी न किसी बात पर पति और अपने ससुर से झगड़ा करने लगती थी।
रोज-रोज पिटाई का परिणाम ये हुआ, कि सविता ने पति से कसम खाकर कहा कि, अब वो ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिससे परिवार की जग-हंसाई हो और वह अच्छी पत्नी, मां और बहू बनकर ही रहेगी।
सुरेश इस आश्वासन पर दिल्ली आने को तैयार हो गया। लेकिन उसे अब भी सविता की बातों पर पूरी तरह से यकीन नहीं था, अतः उसने अपने छोटे भाई विनय से कहा, फ्तुमको सविता पर कड़ी नजर रखनी है और देखना, कि अगर ये किसी के साथ जरा भी कोई उफंच-नीच काम करे, तो पफौरन मुझे पफोन करके बता देना।य्
विनय अब दिनरात सविता के पीछे उसके साये की तरह से लगा रहता था। वो उसकी हर एक गतिविधी पर ध्यान रखता। सविता को एक बार जो स्वाद लग चुका था, उसे वो किसी न किसी तरह से हासिल करने के लिए मचल रही थी। लेकिन उसका देवर विनय सारे मंसूबे पर पानी पिफरा रहा था।
विनय के कारण सविता को जिस्म की आग शांत करने के लिए कोई मोहरा नहीं मिल रहा था। चाहकर भी वो कुछ नहीं कर पा रही थी।
एक दिन किसी बच्चे ने सुरेश के पिता को घर पर आकर बताया, कि विनय भाई को कुछ हो गया है। वो खेत में ट्यूबल के पास पड़े हैं।
पिता ने जाकर देखा, तो वहां वहां उनका छोटा बेटा विनय पड़ा था। आनन-पफानन में उसे लेकर अस्पताल पहुंचे, लेकिन विनय की मौत हो चुकी थी। डाॅक्टरों ने बताया, कि करंट लगने से विनय की मौत हुई है, जोकि ट्यूबल में था।
गांव वालों का तो मानना था कि ये सब सविता ने अपने पुराने प्रेमी राजू के हाथों करवाया है।
दरअसल राजू, सविता के गांव का ही रहने वाला था। कुछ साल पहले वो सूरत में नौकरी करने चला गया था। लेकिन कुछ दिनों पहले ही छुट्टियों में गांव आया था और यहां वो सविता से भी मिला। गांव वाले उन दोनों के बचपन की प्रेम कहानी को जानते थे।
विनय की मौत पर कोई पुलिस केस नहीं बना था, न ही इस बारे में पुलिस को कोई सूचना दी गई थी। राजू पर विनय की हत्या का शक गहराया हुआ था और गांव के लोग गुस्से में भी थे, अतः मौके की नजाकत को देखते हुए राजू के परिवालों ने उसे वापस सूरत भेज दिया।
राजू सूरत तो चला गया, लेकिन उसके कुछ ही समय बाद गांव के लोगों को पता चला, कि अमित ने सूरत में ही राजू को मौत के घाट उतार दिया।
दरअसल अमित, विनय का भतीजा था। वो भी सूरत में ही नौकरी कर रहा था। उसने अपने चाचा की मौत का बदला लेने के इरादे से राजू की हत्या कर दी थी।
गांव वाले अब सविता की हरकतों से परेशान हो गये थे, इसलिए उन्होंने तुरंत सुरेश को पफोन करके दिल्ली से गांव बुला लिया। सुरेश गांव पहुंचा, तो गांव वालों ने उसे खूब भला-बुरा सुनाया…
फ्कब तक तुम्हारी औरत के कारण गांव के लोगों की मौत होती रहेगी। तुम्हारी औरत एक गंदगी के अलावा और कुछ नहीं है, इसलिए इस गंदगी को अपने साथ दिल्ली ले जाओ। वहां उसके साथ कुछ करो, हमें कोई मतलब नहीं है।य्
गांव वालों की गालियां और उनके उलाहने सुनकर सुरेश बुरी तरह से पफंुकार उठा और उसने एक बार पिफर से सविता की बुरी तरह से पिटाई कर दी।
लेकिन इस बार सविता ने पति को खूब समझाया, फ्मैं विनय भाई की मौत के बारे में कुछ भी नहीं जानती। मुझे गांव वाले बेकार में पफंसवा रहे हैं।य्
लेकिन सुरेश कहां मानने वाला था, वो उसे लेकर दिल्ली आ गया। इस बार भी सविता ने पति से वादा किया कि, ‘ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जो तुम्हारे मान सम्मान को ठेस पहुंचाये।’
आखिर सुरेश उसे मापफ न करता, तो पिफर क्या करता…? बच्चों के सामने पत्नी की रही सही हैसियत भी मिट्टी में मिल जाती। पिफर भी सुरेश उस पर नजर रखता था। उसके साथ काम-धंधा भी जुड़ा था, जिससे परिवार का पेट पल रहा था, उसे छोड़ नहीं सकता था।
अब सब ठीक से चल रहा था। सुरेश सुबह धंधे पर निकल जाता और पिफर शाम को घर आता था।
एक रात हर रोज की तरह सुरेश घर वापस लौटा और खाना खाकर बिस्तर पर चला गया। बिस्तर पर पड़ने के कुछ समय पश्चात् ही सुरेश की खर्राटे की आवाज से कमरा गूंजने लगा।
रात करीब तीन बजे के लगभग सारा मोहल्ला पुलिस की गाडियों के सायरन से गूंज उठा। कापफी देर तक तो आसपास के लोगों की समझ में ये नहीं आया, कि आखिर माजरा क्या है?
थोड़ी ही देर में सबको पता चल गया, कि सुरेश का किसी ने उसके ही घर में कत्ल कर दिया है, जिसकी जानकारी पड़ोस में रहने वाले लोगों ने पुलिस को दी थी। जिसके बाद पीसीआर पुलिस मौके पर पहुंच गयी थी।
पुलिस ने अपनी ओर से हर अथक प्रयास के बाद आरोपियों को पकड़ ही लिया। दरअसल सुरेश को उसी की पत्नी सविता ने अपनी बदचलनी के चलते अपने पुराने प्रमियों संग मिलकर मरवा डाला था।
कहानी लेखक की कल्पना मात्रा पर आधरित है व इस कहानी का किसी भी मृत या जीवित व्यक्ति से कोई भी संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्रा होगा।

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