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बीवी चाटे प्यार की चाश्नी Desi XXX Sex Kahani

बीवी चाटे प्यार की चाश्नी Desi XXX Sex Kahani

सात-आठ साल तक सब कुछ ठीक चलता रहा। इन गुजरे सालों में उनके तीन संतानें जिनमें दो लड़के गुरप्रीत सिंह, अर्शदीप सिंह तथा एक लड़की बलजीत कौर हो चुके थे। बच्चे हो जाने के बाद राजू पर पारिवारिक जिम्मेवारी का बोझ बढ़ गया था, जिस कारण परिवार का खर्च बढ़ गया था। मगर कमाई सीमित रही।
बच्चों के साथ-साथ परमजीत कौर को भी अपनी जरुरतों के लिए दिक्कत और मजबूरी मंे दिन व्यतीत करने पड़ रहे थे। दरअसल परमजीत कौर एक महत्वाकांक्षी औरत थी, मगर पति की सीमित आय के चलते वह अपने मन को मारे हुए थी। वह अक्सर अपने अरमानों को पूरा करने का ख्बाव देखा करती थी।
लगभग पौने दो साल पहले परमजीत कौर की मुलाकात अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू से हुई। वह भी बंडाला (पत्ती बाज की) का ही रहने वाला था। शुरु से ही अपने तीन भाइयों बलदेव सिंह, बलजीत सिंह तथा लखविंदर के साथ आर्थिक परेशानी के कारण वह रिक्शा चलाता, कभी भाइयों के साथ ठेकेदारी का काम करता था।
लगभग चार साल अमरजीत की पत्नी आर्थिक तंगी के कारण भाग गई थी। पड़ोसी द्वारा पत्नी के भाग जाने का ताना देने के कारण ही उसका पड़ोसी से झगड़ा हो गया। इस झगड़े में पड़ोसी की हत्या हो गई। केस चला, जिसमंे चारों भाईयों को सज़ा हो गई।
बिट्टू चार साल की कैद काट कर बाहर आ गया। दो भाई अभी जेल में हैं और एक की मृत्यु हो गई है। दो साल से बिट्टू ढिल्लो फार्म हाऊस में चारा डालने का काम कर रहा था। बाजार आने-जाने का रास्ता एक होने के कारण परमजीत कौर और बिट्टू की ढिल्लो फार्म हाऊस के सामने आमना-सामना कभी-कभी हो जाता था।
पत्नी के भाग जाने के कारण बिट्टू नारी सुख से वंचित था। काम में सारा दिन तो वह किसी तरह काट लेता था, मगर रात को जब बिस्तर पर होता, तो उसे नारी के बदन की महक महसूस होती और वह वासना में बेतरहा छटपटाने लगता।

 

इसी क्रम में जब कभी उसकी आंखें खूबसूरत परमजीत कौर से टकरा जातीं, तो उसके दिल में हलचल मच जाती थी। वह ललचाई नजरों से परमजीत के बेपनाह हुस्न को एक टक निहारा करता था और आंहें भरने लगता।
एक रोज परमजीत अपने बीमार बेटे को दवाई दिलाने के लिए किसी सवारी का इंतजार कर रही थी और बेचैन थी। उसी समय बिट्टू, ढिल्लों फार्म हाऊस में चारा डालने आया था। बद्हवास खड़ी परमजीत को देखकर बिट्टू उसके नजदीक आया और बोला, ‘‘क्या बात है?’’ उसने पूछा, ‘‘बड़ी परेशान लग रही हो, कोई मदद कर दूं?’’
‘‘बेटा काफी बीमार है।’’ काफी हताश भरे स्वर में बताया परमजीत ने, ‘‘दवाई दिलाने के लिए डाॅक्टर के पास लेकर जा रही थी। मगर सवारी का इंतजाम ही नहीं हो पा रहा है।’’
‘‘तुम मेरे रिक्शे पर बैठ जाओ।’’ बिट्टू बोला, ‘‘मैं तुम्हें छोड़ देता हूं।’’
जिस रिक्शे पर बिट्टू फार्म हाऊस का चारा लाया था, उसी रिक्शे पर वह परमजीत कौर और उसके बेटे को बिठाके डाॅक्टर के यहां ले गया। इतना ही नहीं दवाई और डाॅक्टर की फीस के पैसे भी बिट्टू ने ही दिए।
बिट्टू अगले दिन परमजीत कौर के घर पहुंचा। वह उसके बेटे का हाल जानने के लिए गया था। परमजीत कौर का पति उस दिन हलवाई के काम पर कहीं बाहर गया हुआ था।
‘‘कैसी तबियत है अब आपके बेटे की?’’ बड़े ही मीठे शब्दों में पूछा बिट्टू ने, ‘‘कुछ आराम है कि नहीं?’’
‘‘बस आपकी दुआ और मेहरबानी से एकदम ठीक है।’’ परमजीत भी अपनेपन से बोली, ‘‘आपने कल खूब मदद की, जिस कारण मेरा बेटा जल्दी ठीक हो गया है।’’
‘‘अजी हमारी नहीं, ये तो ऊपर वाले की मेहर है।’’ अमरजीत उर्फ बिट्टू बोला, ‘‘किसी और चीज़ की जरूरत हो तो मुझे जरूर बताना।’’
‘‘आपने पहले ही कल जो आर्थिक मदद की उसके धन्यवाद के लिए मेरे पास अलफाज़ नहीं हैं।’’ परमजीत कृतज्ञ भावना से बोली, ‘‘मैं यह कर्ज अपने पति के वापस आते ही उतार दूंगी।’’
‘‘आप भी कैसी बातें करती हैं परमजीत जी।’’ सहानुभूति दिखाते हुए बोला बिट्टू, ‘‘मैं तो केवल इंसानिय का फर्ज निभा रहा हूं।’’ फिर वह जबरन परमजीत को रुपए थमाते हुए बोला, ‘‘ये कुछ रुपए हैं, आपको जरूरत पड़ेगी। इन्हें रखा लो मुझे खुशी होगी।’’
बिट्टू की आंखों में अपने लिए चाहत और वासना का मिलाजुला मिश्रण परमजीत कौर ने सहजता से भांप लिया था। पर उसने थोड़ी ना-नुकर करने के बाद रुपए रख लिए।
परमजीत कौर ने घर आए अतिथि का चाय पानी पिलाकर स्वागत किया और जब वह जाने लगा, तो उसे पुनः घर आने की दावत दी।

घर आकर बिट्टू, परमजीत कौर की यादों में खोया सारी रात उसके सपनें देख करवटें बदलता रहा। नारी को पाने की पीड़ा उसे कई सालों से सता रही थी। यूं तो बिट्टू इधर-उधर किराए की औरतों से मुंह मार लिया करता था। पर शबनम की बूंदों से फूल नहीं खिलते बरसात जरुरी थी।
परमजीत कौर से मिलकर उसे अपनी जवानी की खेती पर बरसात होने का पूरा यकीन हो गया था। नए जोश और उत्साह के साथ अगले दिन बिट्टू घायल मन का मरहम पाने के लिए परमजीत कौर के घर पहुंच गया। आज उसके तीनों बच्चे भी घर पर नहीं थे।
‘‘अर्शदीप कैसा है? बिट्टू ने परमजीत कौर को सिर से पैर तक ललचाई नज़रों से पारखी जौहरी की तरह देखा, ‘‘कहां है, दिख नहीं रहा है?
‘‘क्या कभी औरत नहीं देखी, जो यूं मेरी जवानी को नज़र लगाने के लिए ताक रहे हो?’’ परमजीत कौर ने बिट्टू का हौंसला बढ़ाने के लिए इठला कर अदा के साथ कहा।
‘‘औरतें तो बहुत देखीं हैं।’’ परमजीत की आंखों में झांकते हुए बोला बिट्टू, ‘‘पर तुम्हारी निगाहों का जादू और औरतों जैसा नहीं, जो दिल के तारों को छेड़कर झनझना दें।’’ वह आंहें भरते हुए बोला, ‘‘जब से तुम्हें देखा है, दिल और दिमाग में तुम ही तुम समाई हो।’’
‘‘एक दिन में ही तुम तो शायरों जैसी बातें करने लगे।’’ मुस्करा कर बोली परमजीत, ‘‘मैं तो पहले तुझे इशारों का ही कलाकार समझती थी। पर तुम तो शायर भी बन गये हो।’’
बिट्टू की बात को काटकर परमजीत कौर ने उसका हौंसला और बढ़ा दिया और हंस दी।
इतना सुनते ही बिट्टू ने परमजीत कौर को बाहों में समेट लिया, ‘‘शायरी अगर सामने हो, तो कोई भी शायर बन सकता है। तुम्हारा जिस्म तो वैसे ही रागिनी की किताब है…।’’
‘‘इतनी जल्दी नहीं।’’ परमजीत ने बिट्टू की बात को थोड़ा रोकते हुए कहा, ‘‘किसी ने देख लिया, तो फिर मिल नहीं पाएंगे और दरवाजे की कुंडी भी खुली है।’’ कहकर उसने खुद को बिट्टू की मजबूत पकड़ से मुक्त कर लिया।

 

‘‘फिर कब…?’’ बिट्टू ने तड़प कर पूछा, ‘‘आखिर और कब तक मुझे सब्र रखना होगा?’’ वह ललचाई नजरों से परमजीत के हुस्न को देखते हुए बोला, ‘‘हाय! जानेमन इतना न तरसाओ।’’
‘‘थोड़ा और भूख बर्दाश्त करो… और प्यास की मार सहो।’’ मुस्करा कर अदा के साथ बोली परमजीत, ‘‘मेरे प्यारे तभी खाने और पानी का स्वाद आता है।’’ वह सांकेतिक भाषा में बोली, ‘‘मैं भी बहुत प्यासी हूं और भूखी भी। इसीलिए मैं चाहती हूं, कि तुम जब भी मेरी सूखी ‘गगरिया’ में प्रवेश करो, तो आखिर में जमकर प्रेम वर्षा से इसे भर दो। ताकि मेरे तन-बदन की अग्नि पूरी तरह से शांत होकर तृप्त हो जाए।’’
‘‘मगर मैं…।’’
‘‘इ श्… स…।’’ इससे पहले कि अपनी बात पूरी कर पाता बिट्टू, उससे पहले ही परमजीत उसके होंठों पर अंगुलि रखते हुए बोली, ‘‘कहा न सब्र करो।’’ वह हौले से उसके कान के पास फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘आज रात को मेरा पति राजू शादी के काम से वापस आ रहा है। परसों फिर नज़दीक के गांव में शादी का काम करने जाएगा।’’ वह हौले से मुस्करा कर बोली, ‘‘समझे कुछ?’’ परमजीत कौर ने बिट्टू की आंखों में अपनी नशीली आंखों से झांकते हुए कहा, ‘‘तभी तुम और मैं एक हो सकेंगे।’’ वह बिट्टू के खास ‘अंग’ की ओर इशारा करते हुए शरारतपूर्ण अंदाज में बोली, ‘‘तब तक इस मियां मिट्ठू को कहो, कि काबू में रहे और सब्र करे।’’
परमजीत की इस अदा पर तो मर मिटा अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू। बिट्टू शातिर खिलाड़ी था। परमजीत कौर की आंखों में प्यास का तूफान देखने के बाद मुस्कुराया। ईनाम के तौर पर 200 रुपए एक बार फिर देकर दो दिन बाद आने का वादा करके चला गया।
बिट्टू चार साल की कैद काट के आया था। जेल में नशे की गोलियां खाना अफीम, तंबाकू का शौक उसे पूरी तरह लग चुका था।
एक ओर बिट्टू, परमजीत कौर के साथ रातें रंगीन बनाने के सपने देखता रहा। वहीं दूसरी ओर परमजीत कौर भी बिट्टू की अपने पति के साथ जान-पहचान कराने की योजनायें बना रही थी। वह जानती थी, कि बिना किसी जान-पहचान के बिट्टू को घर बुलाना राजू को कभी मंजूर नहीं होगा। अगर दोनों में दोस्ती हो जाए, तो रातों को मिलना आसान हो जाएगा।

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अपनी इसी वासनामयी सोच के तहत रात को जब राजू काम से लौटा, तब उसने अपने पति राजू को बताया, ‘‘हमारे बेटे की बीमारी में बिट्टू ने बहुत मदद की थी। बिट्टू तुम्हें अच्छी तरह जानता है, क्योंकि बिट्टू अक्सर तुम्हारे सेठ की दुकान पर चाय-नाश्ता करने आता है। तुम भी बिट्टू को जानते हांेगे। कल वह तुम्हें दुकान पर मिलेगा। उसने खुद मुझे बताया था।’’

परमजीत कौर ने त्रिया चरित्रा से जो सारा ड्रामा रचा था, उसको अमलीजामा पहनाने के लिए वह शाम के समय बिट्टू से मिली। अपने पति के सेठ की दुकान, पति का नाम और राजू का हुलिया बताकर बिट्टू को राजू से दोस्ती करने का सारा पाठ पढ़ाने के बाद घर वापिस आ गई।
शाम के समय बिट्टू, राजू के सेठ हलवाई की दुकान पर चाय-नाश्ता करने के बहाने पहुंच गया और राजू से घुल-मिलकर बातें करता रहा। राजू भी बिट्टू से जल्दी हंस-हंस कर बातें करने लगा। चूंकि राजू एक सरल और सीधे स्वभाव का व्यक्ति था, अतः यहां दोनों की दोस्ती का आगाज़ हुआ।
इसी दोस्ती की खुशी में इक्कठे बैठकर उन्होंने शराब और कबाब का लुत्फ उठाया। अगले दिन फिर बिट्टू राजू से मिला और फिर एक बार शराब पिलाकर अपनी दरियादिली का परिचय दिया। दूसरे दिन राजू शादी के काम पर अपने कारीगरों के साथ खिलचियां गांव चला गया।
बिट्टू चालाक लोमड़ी की तरह उस रात परमजीत कौर के घर जा घुसा। परमजीत के बच्चे उस समय सो रहे थे। बिट्टू के अंदर कमरे में आते ही परमजीत ने दरवाजे की सिटकनी ऊपर चढ़ा दी। फिर उसने बिट्टू को चारपाई पर धकेल दिया और उसके बगल में उससे सटकर बैठ गयी। धीरे-धीरे परमजीत ने उसकी जांघों पर हाथ रख दिया और उसके शरीर से कामुद छेड़छाड़ करने लगी।
बिट्टू, परमजीत की इस हरकत पर मन-ही-मन रोमांचित हो रहा था। वह समझ गया था, कि आज उसकी हसरत, जो उसने ना जाने कब से अपने सीने में छिपा कर रखी हुई थी, आज पूरी होने वाली है।
दरअसल बिट्टू भी परमजीत के गदराये जिस्म पर उसे पहली बार देखते ही फिदा हो गया था। वह तीन बच्चों की मां भी थी, इसके बावजूद परमजीत के यौवन पर कोई फर्क नहीं पड़ा था। परमजीत द्वारा की जा रही छेड़छाड़ से बिट्टू भी उत्तेजित होने लगा था। वह धीरे-से बोला, ‘‘क्या इरादा है? कहीं तुम बिस्तर का मजा तो नहीं लेना चाहतीं?’’
‘‘चुप मेरे अनाड़ी बलम।’’ एक मादक सिसकी लेते हुए परमजीत ने बिट्टू के होंठों पर अंगुलि रख दी, ‘‘जब सब समझ रहे हो, तो निठल्लों की तरह क्या बैठे हो?’’ वह उसकी आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘आओ न, दरवाजा बंद है और बिस्तर खाली है।’’ वह शिकायती भरे स्वर में बोली, ‘‘ऐसे में तड़पा क्यों रहे हो? उस दिन तो तुम खूब मचल रहे थे। मुझे छोड़ने को तैयार ही नहीं थे, फिर आज क्या हुआ?’’ वह प्यासी नजरों से देखते हुए बोली, ‘‘अब जल्दी से मेरे और अपने वस्त्रा निकाल फेंको इन तपते जिस्मों से।’’
अब तो परमजीत के कामुक रूपी शब्दों के तीरों ने बिट्टू को घायल करके रख दिया। वह वासना की आग में तिल-तिल जलने लगा। उसने झट से परमजीत को बांहों में भींच लिया और बिस्तर पर लेटा दिया। फिर उसके ऊपर झुक कर उसके गुलाबी होंठों का रसपान करते हुए उसके गोरे, उन्नत उभारों को मसने लगा।
‘‘वाह! मेरे राजा।’’ परमजीत ने भी कस कर बिट्टू के होंठों को चूमते हुए कहा, ‘‘इतनी देर से खामखां बेवकूफ बना रहे थे।’’ वह मुस्करा कर बोली, ‘‘तुम्हारा ‘जिस्म’ तो बहुत सख्त हो रहा है।’’ वह मसखरी करते हुए बोली, ‘‘लगता है, तुम्हारी निगाहें पहले से ही मेरे गोरे नाजुक जिस्म पर लार टपका रही थीं।’’
‘‘सही ताड़ा, तुमने मेरी जान।’’ अब बिट्टू भी उसे पूरी तरह खुल गया, ‘‘मैं तो तुम्हें ना जाने कब से अपने नीचे पीसने के लिए मचल रहा था। जब भी तुम्हें देखता, तो बस यही सोचता था, कि काश! कब ये जिस्म मेरे नीचे होगा, ताकि मैं अपने जिस्म की हर हसरत को तुम्हें रौंद कर पूरा कर सकूं।’’

‘‘ओहो!’’ मुस्करा कर बोली परमजीत, ‘‘तो जनाब छुपे रूस्तम निकले।’’ परमजीत ने मस्ती में उसके वस्त्रों के ऊपर ही उसके खास ‘जिस्म’ को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तो अपना ये ‘जिस्म’ ना कब से मेरी ‘देह’ में मन-ही-मन महसूस रहे थे।’’ फिर एक मादक अंगड़ाइे लेते हुए बोली, ‘‘तो फिर आज मन की हसरत पूरी कर लो। मैं तो तुम्हें नहीं रोकूंगी।’’
फिर परमजीत ने बिट्टू के सीने पर सिर झुका लिया और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘अब इन बैरी वस्त्रों को अपने तन से जुदा करो न।’’ फिर मुस्करा पड़ी, ‘‘तब तक मैं भी…।’’ और फिर शरमा गयी परमजीत।
फिर देखते ही देखते दोनों ने अपने सभी वस्त्रा अपने तन से जुदा कर डाले और बिस्तर पर एक ओर फंेक दिए। परमजीत ने जब बिट्टू के जवां, गठीले ‘बदन’ को देखा, तो वह मन-ही-मन रोमांचित हो उठी। उसे लगा आज तो शामत नहीं मेरी ‘देह’ की। फिर सोचने लगी, कि मजा भी तो इसी में है, कि बिस्तर पर संसर्ग के दौरान पार्टनर का मजबूत ‘बदन’ उसकी ‘देह’ में समा कर उसकी गहराई को नापते हुए पूर्णतः तृप्त कर डाले।
फिर तो दोनों बिस्तर पर आदमजात अवस्था में एक-दूसरे जिस्म के अंगों को नांेचने-खसोटने लगे। कभी परमजीत उसके खास ‘अंग’ को पकड़ कर झटका देती, तो कभी बिट्टू उसके अंगों को जोरों से मसलने लगता। इस उठा-पटक में दोनों काफी देर तक लीन रहे और फिर कुछ ही देर में दोनों एक जोरदार मादक सिसकी लेते हुए बिस्तर पर चित्त पड़ गए।
दोनों ही पूर्णतः संतुष्ट हो गए थे। जिस प्रकार से बिट्टू ने परमजीत को भोगा था, परमजीत उसके सेक्स करने के अंदाज वे उसके सख्त व मजबूत ‘बदन’ के नीचे पिसकर खुद को गर्वित महसूस कर रही थी। उसे अपना पति राजू, बिट्टू के आगे एकदम नपुंसक महसूस हो रहा था।
यही सिलसिला दोनों का सुबह की पौ फटने तक चलता रहा। सुबह के चार कब बज गए? दोनों को मस्ती के आलम में इसका पता ही नहीं चला।
बिट्टू, औरतों की रग-रग से वाकिफ था। इसीलिए अफीम का नशा करने के बाद वह औरतों के लिए फरिश्तें से भी ज्यादा बन जाता था। यही परमजीत कौर के साथ भी हुआ। पति राजू के काम से थककर घर वापिस आने के बाद कभी बेड पर रात में दशहरा दीवाली नहीं बना पाई थी। कभी-कभी राजू के शराब पीकर आ जाने पर चार-पांच मिनट के सुख के सिवाये उसे कभी जी भरकर पति की जवानी का रस पीने को नसीब नहीं हुआ था।
मगर बिट्टू ने एक ही रात में अपने मोहिनी मंत्रा से उसको परम सुख की आहुति से स्वाह कर दिया था। जो सपने बिट्टू देख रहा था, अब परमजीत कौर उन सपनों में खोई हुई थी और फिर मिलने की आकांक्षा में बिट्टू से बार-बार सम्पर्क करती रही।
बिट्टू ने परमजीत कौर की परेशानी देखकर उसे एक मोबाइल भी खरीद कर दे दिया। इतना ही नहीं बिट्टू ने परमजीत कौर के साथ-साथ तीनों बच्चों के नए-नए कपड़ों पर भी खर्चा करना शुरु कर दिया।

लगभग दो साल तक दोनों के अवैध-संबंधों का व्यापार काली रातों में निर्विघ्न चलता रहा। राजू के घर आना-जाना उसके लिए बड़ा ही आसान था। आर्थिक तंगी के कारण राजू ने उसे दोस्ती का मसीहा समझ कर अपने यहां आने-जाने की पूरी आजादी दी हुई थी। मगर दोस्ती की नकाब के पीछे अवैध रिश्ते का राजू को पता नहीं चल पाया।
कहावत है इश्क-मुश्क, खून और खांसी किसी भी तरह से छुपे नहीं रहते। बिट्टू और परमजीत कौर के मामले में भी ऐसा ही हुआ। आस-पड़ोस और गांव की औरतों की कानाफूसी के बाद परमजीत और अमरजीत उर्फ बिट्टू के अवैध रिश्तों की जानकारी जब गांव के लोगों को हुई, तब उन्होंने राजू से बिट्टू के साथ दोस्ती तोड़ देने की सलाह दी।
राजू को जब दोनों के अवैध रिश्ते की भनक लगी, तब उसने बिट्टू में दिलचस्पी कम कर दी। बिट्टू ने जब राजू से इसका कारण जानना चाहा, तो राजू ने भड़क कर कहा, ‘‘तू तो दोस्त के वेश में आस्तीन का सांप है। दोस्त के घर में ही डाका मार कर तूने दोस्ती की हत्या की है।’’
‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता, कि तेरे मन में मेरे खिलाफ किसने बारूद भर दिया है।’’ शराब का आखिरी घूंट भरते हुए बिट्टू ने कहा, ‘‘इसलिए आज शराब पी कर तू क्यों बहकी-बहकी बातें कर रहा है?’’ अपनी सफाई में बोला बिट्टू, ‘‘तेरी कसम यार! मेरे दिल में तेरे लिए व भाभी के लिए कोई पाप नहीं है।’’
जानबूझ कर राजू आज बिट्टू के साथ शराब पी कर बिट्टू और परमजीत कौर के अवैध रिश्ते को खत्म करने के मूड में बिट्टू से भिड़ गया था। उसने साफ शब्दों में आज कह भी दिया, ‘‘आइन्दा मेरे घर आने, मेरी बीवी से मिलने व मेरे बच्चों को तोफे देने की कोई जरुरत नहीं।‘‘
‘‘अब तू मुझसे ऐसे बात करेगा।’’ बिट्टू, राजू का काॅलर पकड़ते हुए बोला, ‘‘यह तेरा आखरी फैसला है?’’
‘‘हां, यह मेरा आखिरी और अटल फैसला है।’’ चीखते हुए लड़खड़ाती आवाज में राजू ने अपना फैसला सुना दिया बिट्टू को।
यह घटना आज से लगभग छः महीने पहले की थी। बिट्टू ने राजू के इस फैसले को शराब के नशे में धुत्त एक शराबी का फैसला समझा और चुपचाप अपने घर चले जाना ठीक समझा।
वह अगले दिन छुपकर परमजीत कौर से मिला और राजू के साथ हुई तकरार की सारी जानकारी दी। चोरी पकड़े जाने पर परमजीत कौर पति से माफी मांगी और पुनः अमरजीत से नहीं मिलने की कसम खाई। मगर ज्यादा दिन तक परमजीत, पति से किए गये वायदे पर अमल नहीं कर सकी। उसने चोरी छिपे अपने प्रेमी से मिलने का सिलसिला जारी रखा।
लगभग दो महीने पहले राजू ने पुनः बिट्टू को अपनी पत्नी के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया। दोनों में जमकर मार पिटाई हुई। बिट्टू तो अंधेरे का लाभ उठा कर भागने में सफल हो गया। मगर उसके बाद राजू ने अपना सारा गुस्सा पत्नी की धुनाई करके उतारा।
बिट्टू ने इस घटना के पंद्रह-बीस दिन बाद राजू को रास्ते से हटाकर एक साथ रहने की योजना बनाई। इस योजना के पहले चरण में बिट्टू ने नाटक करते हुए राजू से मिलकर अपनी गल्तियों के लिए तौबा करते हुए राजू को बरगला कर उससे एक बार फिर मिलना-जुलना और शराब व कबाब का दौर शुरु कर दिया।
योजना के दूसरे चरण में बिट्टू ने अपने 17 साल के भतीजे सुखविंदर सिंह उर्फ विक्की को दस दिन तक खूब खिलाया-पिलाया। जैसे बली के बकरे को बली चढ़ाने से पूर्व खिला-पिला कर तैयार किया जाता है, वैसे ही विक्की को तैयार किया गया।
यूं तो विक्की जानता ही था, कि बिट्टू चाचा को कोई ना कोई काम कराना होगा, तभी मेरी सेवा में लगा है। फिर भी उसने पूछ ही लिया, ‘‘चाचू किस काम के लिए रात दिन मुझ पर यूं रुपया लुटा रहे हो?’’ उसने मुस्करा कर पूछा, ‘‘आखिर इतने मेहरबान क्यों हो रहे हो आजकल मुुझ पर?’’

‘‘आज यूं रुपए लुटाने की बात पूछ रहा है, वैसे क्या पैसे जेल में बैठा तेरा पापा भेजता है? तू मेरा और मैं तेरा ख्याल रखूं, तभी चाचा-भतीजे का रिश्ता निभता है। तुझे मेरा काम करना है या नहीं करना ये तेरी मर्जी पर है…।’’ बिट्टू ने जानबूझ कर मायूसी और नाराजगी दिखाते हुए कहा।
विक्की जानता था कि उसके पिता जेल में हैं, इसलिए चाचा ही टाईम-बेटाईम रुपए पैसे से मदद करता है। अतः चाचा बिट्टू की नाराजगी देखकर बोला विक्की, ‘‘तेरे काम के लिए मैंने कब मना किया है?’’ वह बिंदास होकर बोला, ‘‘चाचू एक बार हुक्म तो कर, तेरे लिए तो जान भी हाजिर है…।’’
बिट्टू ने विक्की के दिमाग में बड़ी चालाकी से यह बात बैठा दी, कि अगर उसकी चाची आ जाएगी, तब उसे भी खाना कपड़े और रहने की हर सुविधा आसानी से मिल जाएगी।
विक्की को राजू की हत्या करने के बारे में जब बिट्टू ने बताया, तो उस वक्त विक्की ने हत्या की बात सुनकर हैरानी से इतना कहा जरुर था कि, ‘‘हत्या का परिणाम पहले हम देख चुके हैं। एक बार फिर विचार कर लंे तो अच्छा है…।’’
बिट्टू ने विक्की को बताया कि ‘‘पहले वाली हत्या तो सबके सामने हुई, थी, इसीलिए सबको सजा भुगतनी पड़ी थी। मगर अबके इस काम को हम इतनी होशियारी और चालाकी से अंजाम देंगे, कि किसी को कभी भी इसका सुराग तक नहीं मिल सकेगा।’’
‘‘तो फिर ठीक है।’’ एक गहरी सांस लेकर बोला विक्की, ‘‘अपने चाचू के लिए मैं इतना तो कर ही सकता हूं।’’
‘‘यह हुई न मर्दों वाली बात।’’ चहकर विक्की की पीठ ठोकते हुए बोला बिट्टू, ‘‘मैं जानता था, कि तू अपने चाचा को कभी ना नहीं कह सकता।’’
विक्की के तैयार हो जाने पर बिट्टू ने राजू को 28 अक्टूबर को फोन करके तरन तारन बाई पास चैक के पास गांव मलिया अपने पुराने शराब पीने के ठिकाने पर इक्ट्ठे बैठकर शराब पीने की बात कहकर बुलाया।
उस दिन विक्की भी उन दोनों के साथ बैठकर शराब पी रहा था। जान-बूझकर विक्की ने राजू को ज्यादा शराब पिला कर टुन्न कर दिया था। दोनों सहारा देकर कुछ दूर राजू को खेतों में ले गए। फिर वहां दराती और चाकू से दोनों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी।
ज्यादा शराब के नशे में होने के कारण राजू चाहकर भी उनका विरोध नहीं कर सका। जमीन पर गिरकर कुछ पल तड़पने के बाद वह ठंडा हो गया। बिट्टू ने राजू के कपड़ों की तलाशी ली, तो कुछ रुपए और एक डायरी मिली। उस डायरी के अंदर वाले हिस्से को बिट्टू ने फाड़ लिया और जिल्द वहीं फेंक कर दोनों फरार हो गए।
अगले दिन बिट्टू, पुलिस की कार्यवाही पर नजर रख रहा था और विक्की तरन तारन चला गया था। इस तरह बिट्टू ने अपनी इश्क के रोड़े राजू की हत्या कर अपनी योजना का तीसरा चरन भी पूरा कर दिया था।

 

कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।

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