Subscribe now to get Free Girls!

Do you want Us to send all the new sex stories directly to your Email? Then,Please Subscribe to indianXXXstories. Its 100% FREE

An email will be sent to confirm your subscription. Please click activate to start masturbating!

Desi Kamvasna Kahani नादान जवानी

Desi Kamvasna Kahani नादान जवानी

बचपन में मैंने बहुत बार खेलते हुए सुधा के नाजुक अंगों को देखा था, जो कि शुरू से ही आम लड़कियों के नाजुक अंगों से काफी आकर्षक व खिले हुए थे। मैं कभी-कभी बहाने से उसके नाजुक अंगों पर हाथ भी फिरा देता था, लेकिन मेरा मन था कि मैं भली-भांति, बिना किसी संकोच के उसके बदन को छू सकूं, सख्ती से सहला सकूं। मगर मुझे डर लगता था कि कहीं वो अपने घर वालों को न बता दे, क्योंकि मेरी उसके बड़े भाई के साथ बिल्कुल भी नहीं बनती थी। वो सुधा को भी मेरे साथ न बोलने के लिए कहता रहता था, लेकिन सुधा हमेशा मेरी तरफ ही होती थी।
लेकिन अब सुधा बड़ी हो चुकी थी और जवानी उसके शरीर से भरपूर झलकने लगी थी। मैं उसको बांहों में लेने को बेकरार हो रहा था। लेकिन अब वो पहले की तरह मेरे साथ पेश नहीं आती थी। ऐसा मुझे इसलिए लगा क्योंकि वो मेरे ज्यादा पास नहीं आती थी। केवल दूर से ही मुस्करा देती थी।
लेकिन एक दिन मेरी किस्मत का सितारा चमका। उस दिन मैं सुबह अपनी छत पर धूप में बैठने के लिए गया, क्योंकि उन दिनों सर्दियां थीं। मैं अपनी सबसे ऊपर वाली छत पर जाकर कुर्सी पर बैठ गया। वहां से सामने सुधा के घर की छत बिल्कुल साफ दिख रही थी। मैं सोच रहा था कि सुधा तो स्कूल गयी होगी, लेकिन तभी मैंने नीचे सुधा की आवाज़ सुनी। मैंने नीचे देखा, कि सुधा के मम्मी-पापा कहीं बाहर जा रहे थे।

थोड़ी देर बाद सुधा अंदर चली गयी। मैं सोच रहा था कि आज मौका अच्छा है और मैं नीचे जाकर सुधा को फोन करने के बार में सोच ही रहा था कि मैंने देखा कि सुधा अपनी छत पर आ गयी थी। मैं उसको छुपकर देखने लगा, क्योंकि मैं सुधा को नहीं दिख रहा था। उस दिन सुधा ने शर्ट और पाजामा पहन रखा था और ऊपर से जैकिट पहन रखी थी। तभी उसने धूप तेज होने की वजह से जैकिट उतार दी और कुर्सी पर बैठ गयी। उसने अपनी टांगें सामने पड़े फोल्डिंग चारपाई पर रख लीं और पीछे को होकर आराम से बैठ गयी। जिसकी वजह से उसके कोमल, नाजुक अंग वस्त्र से बाहर को नुमाया हो रहे थे।
मेरा दिन उन्हें छूने को हो रहा था। मैं बड़े गौर से उसके शरीर को देख रहा था। तभी अचानक सुधा ने अपने शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल दिए। मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं यह सब देख रहा हूं। मैंने अपने आपको थोड़ा संभाला। लेकिन तब मैं अपने आपको उत्तेजित महसूस कर रहा था। मैं खुद को संभाल नहीं पा रहा था।

 

उस वक्त मेरा और भी बुरा हाल हो गया, जब मैंने देखा कि सुधा अपने ही हाथों से अपने नाजुक अंगों को धीरे-धीरे सहलाते हुए इस अद्भुद सुख का एहसास ले रही है। मैं यह सब देखकर बहुत ही उत्तेजित हो रहा था।
अचानक मुझे झटका लगा, क्योंकि मेरे देखते ही देखते सुधा कहीं चली गयी थी। शायद नीचे अपने कमरे में। मैं भी खुद को संभालते हुए नीचे उतरने लगा। अब मेरे मन में सुधा के साथ सहवास करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो रही थी। मैं उसको बांहों में भरकर जी भरके प्यार करना चाहता था। वैसे भी उसके मां-बाप घर पर नहीं थे, इसलिए आज मौका भी अच्छा था।
तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया। मैं जल्दी से नीचे गया और सुधा के घर फोन कर दिया। पहले तो वह मेरी आवाज़ सुनकर हैरान हुई, क्योंकि फोन पर हमारी ऐसे कभी बात नहीं हुई थी। लेकिन वह बहुत खुश थी। हम इधर-उधर की बातें करते रहे।
तभी वह बोली, ”आप क्या इस वक्त अभी मेरे घर आ सकते हैं?“
सुनकर कानों को विश्वास नहीं हुआ, “क्या मैं आपके घर आ जाऊं?“
“हां, आ सकते हो क्या?’’ उसने बड़ी मीठी आवाज में कहा।
”मगर इस वक्त तो तुम्हारे घर में कोई नहीं है, ऐसे में…“
“तभी तो बुला रही हूं।” वह मेरी बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ी, “आ रहे हो या…“
“हां…हां… अभी आता हूं।“ मैं भी तपाक से बोला।
फिर पहले कमरे में जाकर मैंने पहले फ्रिज से पानी की ठंडी बोतल निकाल कर पानी पिया और अगले ही पल मैं उसके कमरे में उसके बेडरूम में था…
उसने मेरे आते ही कमरे की कुंडी लगाई और मेरे करीब आकर बोली, ”कैसा लगा?“
“क्या कैसा लगा?“
“वही जो तुम अपनी छत से मुझमें देख रहे थे और आंहें भर रहे थे।’’ वह बोली
“म…म…मैं कुछ भी तो नहीं देख रहा था..।’’ मैं हकलाते हुए बोला।
मैं अभी और कुछ बोलता, तभी मेरी सोच के परे एक अचरज हुआ सुधा ने पुनः अपनी शर्ट के दोनों बटन खोल दिये और अपने कबूतरों को ब्रा की कैद से आजाद करती हुई बोली, “जिन्हें देखकर आंहें भर रहे थे…उन्हें प्यार नहीं करोगे? या फिर अभी भी बगुला भगत बनकर देखते रहोगे?’’

मेरे सब्र का पैमाना भर गया…मैंने तपाक से उसके दोनों कबूतरों को हाथों में लेकर मसल दिया।
“उई मां…।’’ वह चीख कर बोली, “आराम से…जान लोगे क्या इनकी?’’ फिर एकाएक मुस्करा कर बोली, ‘‘अभी तो बड़े भोले बन रहे थे और अभी-अभी करंट लग गया, जो मुझे इस तरह मसल दिया?’’
मैं कुछ न बोला और तेज-तेज हांफते हुए उसके कबूतरों की लाल चोंचों को मुंह में लेकर पुचकारने लगा…
वह भी आगे कुछ न बोली और आंखें बंद किये मादक सिसकियां लेने लगी… मैं उसके कबूतरों को कुछ देर यूं ही मसलते व सहलाते रहा…. फिर एकाएक उसके हाथ भी मेरी पैन्ट के ऊपर से मेरे शैतान खिलाड़ी को सहलाने लगे…मेरा शैतान भी अंदर ही अंदर हिल-डुल कर अपनी मौजूदगी का एहसास कराने लगा…
तभी सुधा मुस्करा कर बोली, ‘‘मैंने लड़की होकर खुद ही अपने कबूतरों का दीदार तुम्हें करवा दिया। क्या तुम अपने इस शैतान के दीदार नहीं करवाओगे?’’
कहकर उसने जोर से मेरे शैतान को दबा दिया, जिस कारण मेरा शैतान पैंट के अंदर से ­ऊपर उठता हुआ बाहर झांकने की लालसा करने लगा…
मैने पैंट की कैद से अपने शैतान को बाहर निकाल लिया…मेरे शैतानी अंग को देखकर सुधा एक पल को ठिठक सी गई, “हाय रे तौबा…ये तो वाकई शैतान से भी खतरनाक रूप धारण लिए हुए है। इतना विशाल और ताकत वर है ये।’’
‘‘अरी जानेमन घबराओ नहीं..मेरा शैतान दिल का बहुत शांत है। बहुत प्यार से पेश आयेगा ये तुम्हारे साथ शैतानी करने में।’’
‘‘ना बाबा ना…’’ सुधा अजीब सा मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘मुझे तो नहीं खेलना इस शैतान के साथ प्यार का खेल…ये तो भुर्ता बना देगा मेरी नीचे वाली अनछुई सहेली का।’’
‘‘अब यूं न नुकुर न करो सुधा।’’ मैं उसके गुलाबी होंठों को चूमकर बोला, ‘‘अब सब्र नहीं होता।’’ मैं हवस में हांफता हुआ बोला, ‘‘उतारो न।’’
एकाएक सुधा मेरे सीने से लग गई और हौले से बोली, ‘‘तुम खुद ही उतार दो न…मुझे शर्म आयेगी और हां कपड़े उतारने के बाद मेरा नग्न शरीर देखकर पागल न हो जाना। और अपने शैतान को भी कहना कि मेरी निचली कोमल सहेली से प्यार से पेश आये।’’
मैं मुस्करा कर बोला, ‘‘मैंने खाली उतारो न कहा, और तुम तो खुद ही समझ गई कि मैं कपड़े उतारने की बात कर रहा हूं।’’
‘‘अब एक लड़का और लड़की कमरे में अकेले हों और लड़का उसके छूते हुए उतारो न कहे, तो इसका मतलब क्या होता है ये हर कोई लड़की समझ जायेगी।’’ वह भी मेरे होंठों को चूमते हुए बोली, ‘‘अब उतारो न जल्दी से मेरे कपड़े…’’

 

फिर क्या था मैंने फौरन उसके और अपने सभी कपड़े उतार कर बेड की साइड में फेंक दिये। हाय…उसका गोरा चिकना वो भी बिल्कुल नग्न अवस्था में देखकर मैं तो पागल ही हुआ जा रहा था। मैंने उसकी लाल गुलाबी चिकनी नीचे वाली सहेली को जोर से रगड़ दिया… वह मादक सिसकी भरती हुई बोली, ‘‘उफ..स..आह…हाथ से नहीं…कुछ और..’’
मैं समझ गया..वो क्या चाह रही थी…मगर फिर भी मैंने धैर्य रखते हुए जल्दबाजी नहीं दिखाई और फोरप्ले ही करता हुआ उसके दूधिया उभारों को मसलने लगा…सुधा बेतहाशा कामज्वाला में तड़प रही थी। वो रह-रहकर मादक सिसकियां भर रही थी और मुझे अपने ऊपर खींचकर प्यार का प्रोग्राम चालू करने का इशारा कर रही थी।
इस बार मैंने देर नहीं की और तपाक से उसकी देह में घुस गया…
‘‘आह..ओ…मां…।’’ वह बुंरी तरह तिलमिलाई जैसे उसके सीने में किसी ने गरम सलाख घुसेड़़ दी हो, ‘‘उई…हटो…रूको…’’
मैंने उसके होंठों को चूमा और कहा, ‘‘क्या हुआ…तकलीफ हो रही है?’’
‘‘हां…न…हटो…।’’ वह जबड़े भींचते हुए बोली, ‘‘बहुत मोटा है तुम्हारा शैतान…क्या खिलाते हो इसे…मेरा पूरा मैदान अंदर तक तहस-नहस कर दिया इसने?’’
‘‘खाने की बारी तो आज आई है इसकी और तुम हो कि अब दर्द का लेकर बैठ गई।’’ मैं उसके ऊपर झुका हुआ हौले-हौले धक्के देता हुआ बोला, ‘‘चलो प्यार से और धीरे से करता हूं।’’
‘‘हू..म..।’’ वह इतना ही बोली और मुझे कसकर अपने सीने से चिपका लिया।
फिर मैं उसके ऊपर से हटा और एक नई चीज करने लगा, ताकि उसे मजा ज्यादा और दर्द कम हो। मैं उसकी निचली गुलाबी ‘सहेली’ को चाटने लगा। उसे मौखिक दुलार देने लगा। यह क्रिया काम कर गई। वह जोर-जोर से मादक सिसकियां भरने लगी। उसने मेरे सिर को बालों से पकड़ कर अपनी देह में चिपका दिया और उचक उचक कर मेरे मुंह में अपनी देह सटाने लगी…
कुछ देर तक ऐसे ही करने के बाद…जब मैंने दोबारा उसकी देह में समा कर उसकी सवारी की, तो एक बार वह दोबारा दर्द से उचकी…मगर ज्यादा हाय तौबा नहीं की इस बार। मैं धीरे-धीरे आगे बढता रहा और उसे भी बहुत मजा आने लगा। फिर देखते ही देखते हम दोनों दो जिस्म एक जान हो गये।
एक बार विशाल की वजह से हमारी पूरे दिन बात नहीं हो पाई। हम दोनों बहुत परेशान थे। हम छत पर भी नहीं मिल पाए। विशाल ने उसको हमारे घर भी नहीं आने दिया था। उस दिन मैं परा दिन बहुत परेशान रहा, क्योंकि सुधा मुझे सिर्फ एक बार दिखी थी और हमारी बात भी नहीं हो पायी थी। रात के 10ः00 बज चुके थे। मैं बैठा सुधा के बारे में सोच रहा था कि तभी बाहर डोर-बेल बजी। जब मैंने दरवाजा खोला, तो देखा कि बाहर सुधा खड़ी थी।
उसने मुझसे सिर्फ इतना कहा कि, ‘‘आज रात मैं 12ः30 बजे तुम्हें फोन करूंगी, मंगल। क्या करूं मंगल मेरा मन नहीं लग रहा है।’’ और वह वापस चली गयी।
मैं एकदम से हैरान रह गया। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन मैं बहुत खुश था। पहली बार किसी से रात को बात करनी थी। दरवाजा बंद करके अंदर आया और मम्मी से कहा कि पता नहीं कौन था, घंटी बजाकर भाग गया। 11ः00 बजे सभी सो गये, लेकिन मुझे नींद कैसे आ सकती थी? मैंने दूसरे फोन की तार निकाल दी थी और अपने कमरे वाले फोन की रिंग बिल्कुल धीमी कर दी थी। साथ ही कमरे का दरवाजा भी बंद कर लिया था।
तकरीबन 12ः37 पर उसका फोन आया। सुधा बहुत ही धीमे स्वर में बोल रही थी। उसने बताया कि मेरे भाई विशाल ने हम दोनों को बातें करते हुए देख लिया था। इसलिए उसने मुझे तुमसे मिलने और फोन पर बात करने से मना किया है। वह कहता है कि तुम अच्छे लड़के नहीं हो। लेकिन मुझे तो तुम बहुत अच्छे लगते हो, मंगल। तुमसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं तुमसे बात किए बगैर एक दिन भी नहीं रह पाती हूं। इसलिए मंगल हम दोनों रात को बात किया करेंगे और इस समय हमें कोई डिस्टर्ब भी नहीं करेगा, खासकर विशाल।’’
हम दोनों की बहुत देर तक बातें होती रही। अब सुधा पूरी तरह मेरे जाल में फंस चुकी थी। तब मैंने पूछा कि, ‘‘तुम कमरे में अकेले ही हो न? इतने धीमें स्वर में क्यों बोल रही हो?’’
उसने कहा कि, ‘‘मेरे कमरे का दरवाजा खुला है और मम्मी-पापा साथ वाले कमरे में हैं।’’
तब मैंने उसको दरवाजा बंद करने को कहा। उसने पूछा क्यों? मैंने कहा कि, ‘‘उसके बाद मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा।’’
तो वो कहने लगी कि नहीं, ‘‘मुझे डर लगता है, कहीं मैं इसी तरह तुम्हारे साथ प्यार का खेल खेलते-खेलते प्रिग्नेन्ट हो गई तो।’’
तब मैंने उससे कहा, ‘‘मैं कभी तुम्हारे साथ जबर्दस्ती नहीं करूंगा। जो तुम्हें अच्छा लगेगा, हम वही करेंगे और वैसे ही सावधानी से कंडोम का इस्तेमाल करके करेंगे।’
यह सब कहकर मैं यह देखना चाहता था कि सुधा पर मेरी बात का कहीं उल्टा असर तो नहीं हो रहा है। हालांकि यह सब मैंने हंसते-हंसते कहा था, लेकिन सुधा गंभीर हो गयी थी। उसके बाद फोन अचानक बंद हो गया था। मैं सोच में पड़ गया कि कहीं सुधा को मेरी बातंे का बुरा तो नहीं लग गयी थीं?
वह रात मैंने जागते हुए काट दी। अगली सुबह मैं सुधा से मिलने के लिए बेकरार हो उठा, लेकिन सुधा कहीं नहीं दिखी। फिर मैं उसे फोन करने लगा, लेकिन फोन पर भी उससे बात नहीं हो सकी। अब तो मैं परेशान हो गया। पूरे सात दिनों की लंबी प्रतीक्षा के बाद मैं सुधा की एक झलक देख सका, तो मुझे एहसास हुआ कि जैसे रेगिस्तान के भटके हुए राही को किनारा मिल गया हो। मैं सुधा से बात करने के लिए तड़प उठा। जैसे ही सुधा को अकेले में देखा, मैं उसके पास जा पहुंच गया और बोला, ‘‘कहां थी तुम सुधा अब तक? मैं कितना परेशान हो रहा थ, तुम्हें अंदाजा है इस बात का?’’

‘‘मंगल, तुम मुझे भूल जाओ। अब हम एक-दूसरे से मिल नहीं सकते, क्योंकि हमारे घर वालों को सब पता चला गया है। उन्होंने मेरी शादी तय कर दी है। अब मैं तुमसे कभी मिल नहीं सकती। तुम मुझे सपना समझ के भूल जाना।’’
‘‘य….यह तुम क्या कह रही हो सुधा?’’
लेकिन सुधा मेरा जवाब सुनने के लिए वहां खड़ी नहीं थी। वह तुरंत ही वहां से चली गयी थी। मुझे जोरांे का झटका लगा था। मैं सुधा को पाकर भी दूर हो गया था। सुधा को हासिल करने का मेरा सपना तो पूरा हो गया था..
आज इस किस्से को काफी दिन हो गये हैं। मैं सोचता हूं कि जो हुआ, अच्छा हुआ था। वो कच्ची उम्र का सेक्स था, जो अक्सर बला को न्यौता देता है। अगर सुधा के साथ कुछ गड़बड़ हो जाता, यानी वह प्रिग्नेन्ट हो जाती या फिर सेक्स की राह में चलते-चलते हम दोनों एक न हो पाते तो हम दोनों ही शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार व खत्म हो जाते। मैं भी सुकून से न रह पाता।
सुधा की शादी हो गयी है। उसके दो बेटे हैं, हंसता-खेलता परिवार है उसका। कभी-कभार सुधा से मेरा सामना होता है, तो हम दोनों मुस्कराने लगते हैं। तब अतीत का एक टुकड़ा हमारे जेहन पटल पर थिरकने लगता है।

कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.