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Hindi Sex Stories टाॅप की काॅलगर्ल

Hindi Sex Stories टाॅप की काॅलगर्ल

एक दिन की बात है। मैं और सोनिया बेडरूम में बैठी हंसी-ठिठोली कर रही थीं। अचानक कुछ ऐसी बात हुई कि सोनिया ने खिलखिला कर मुझे अपनी बांहों में दबोच कर मेरे गालों को चूम लिया। उसकी यह अदा मुझे काफी अच्छी लगी। दरअसल अचानक की मेरे बदन में सिहरन दौड़ गयी थी। उसका स्पर्श मुझे प्रफुल्लित करने लगा था। जब सोनिया ने मुझे चूमकर अपने हाथ हटाये तब, मैं उसका चेहरा देखने लगी। सोनिया ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? मैंने कोई जवाब नहीं दिया। पर उस रोज से हम दोनों ही सहेलियों ने इस चिपटा-चिपटी के खेल को जारी रखना शुरू कर दिया।

शुरूआत हुई एक-दूसरे के बदन को स्पर्श करने, चूमने-सहलाने से और जब इस खेल में हम दोनों को मजा आता गया, तब हम दोनों बदन से रगड़ने व आनंद उठाने का कोई मौका नहीं गंवाते थे। इस उम्र में एक लड़की को एक लड़के के सथ खेल खेलने में मजा आता है, पर वही मजा हम दोनों सहेलियों को एक-दूसरे के साथ आ रहा था। धीरे-धीरे हमारा चस्का बढ़ता गया। हम दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगीं तथा साथ जीने-मरने के कसमें-वादे करने लगीं। पर शायद ईश्वर को यह मंजूर नहीं था। एक रोज हमारे घरवालों को इसका पता चल गया। उन्होंने हमें बुरी तरह डांटा-फटकारा। इस घटना के डेढ़ महीने बाद सोनिया के घरवालों ने जबरन सोनिया का विवाह कर दिया। सोनिया अपनी ससुराल चली गयी। इधर मेरे घरवाले भी मेरा रिश्ता करने के लिए मेरे पीछे पड़ गये थे। मैं बहुत उदास रहा करती थी।
एक दिन अचानक मेरे मन में क्या आया, कि मैंने अपना घर छोड़ दिया अैर अपने एक रिश्तेदार के पास गुवाहाटी आ गयी। यहां से मेरे जीवन का दूसरा अध्याय शुरू होता है।

गुवाहाटी में रहते हुए मुझे एहसास हो गया, कि यहां मैं किसी हम-उम्र लड़की को अपनी फ्रैंड तो नहीं बना सकती थी, अलबत्ता कई पुरूष मेरे पीछे पड़ गये थे। उनकी नजरों से ऐसा लगता था, कि वे मुझे कच्चा चबा जाना चाहते थे। जब तक मैं बच सकती थी, बची रही… पर हवस के भूख भेड़ियों ने मुझे ज्यादा दिनों तक आजाद फिजा में आजादी से सांस लेने नहीं दिया। मैं लुट गयी। गुवाहाटी से भागकर मैं अपनी सहेली नीलू के पास शिलाॅन्ग आ गयी, लेकिन यहां भी मेरी आबरू सुरक्षित नहीं थी। नीलू के पति मोहन ने ही पहली रात मेरी आबरू तार-तार कर दी।

 

मोहन के बाद एक-एक करके कई मर्द मेरी जिन्दगी के अंग बनते चले गए। नीलू के भी कई आशिक थे। हम दोनों सहेलियां नये-नये मर्दों को फांसने में जुट गयी थीं। जो भी एक बार मेरी ओर देख लेता, वही मेरे रूप-यौवन का दीवाना बन जाता। हालांकि मैंने महज वासना की भूख शांत करने के लिए नए-नए आशिकों से शारीरिक संबंध बनाये मगर बदले में छोटे से उपहार से लेकर नकद रुपए भी प्राप्त होने लगे। तब यह सिलसिला बढ़ता चला गया।
अनजाने में मैं काॅलगर्ल बन गयी थी। सहेली और उसके पति ने अत्यंत चालाकी से मुझे काॅलगर्ल बना दिया और मेरे तन के पराए मर्दों के हवाले करके भरपूर कमाई करने लगे। जब पैसा आने लगा, तो जीवन स्तर भी बदलता गया। मैंने ऐशो-आराम की जिन्दगी जीने का फैसला कर लिया। जिस रास्ते पर मैं चल पड़ी थी, अब वहां से पीछे मुड़कर नहीं देख सकती थी। अतः मैंने सोचा कि जब जिस्म की बेचना है, तो कायदे से बेचा जाए और भरपूर कमाई की जा सके। अब तक मैं इस फन में माहिर हो चुकी थी। सब सोच-विचार कर मैंने सहेली तथा उसके पति को टाटा कर दिया और होटल में अकेली रहने लगी। एक हाई सोसायटी गर्ल के तौर-तरीके और वेशभूषा के अपना कर मैं धंधे में उतरी और यह सफर अब तक जारी है… मेरे कई स्थायी ग्राहक बन गये हैं, जो मुझ पर दौलत, पानी की तरह बहाते हैं। यहां के सारे होटलों में मेरा ही सिक्का चलता है।

 

शिलाॅन्ग घूमने आये पर्यटक मेरे रूप-यौवन के दीवाने हैं। होटल वाले उन्हें मेरी तस्वीर दिखाते हैं। उसके बाद उनका फोन आता है और मैं उनकी खिदमत में पहुंच जाती हूं। अच्छी कमाई हो रही है। मेरे पास सब कुछ है, पर कभी-कभी सोचती हूं, कि यह अच्छा नहीं हुआ। लेकिन इसमें मेरा क्या कसूर है? अतीत के तल्ख अनुभवों ने मुझे हाई सोसायटी गर्ल बनने पर मजबूर किया। अब तक जो भी मिला, सभी ने अपना उल्लू सीधा करना चाहा और साजिश करके मुझे देह-व्यापार के धंधे में उतार दिया। जिन लड़कियों के कदम एक बार इस मार्ग पर पड़ जाते हैं, वे चाहकर भी अपने को रोक नहीं पाती हैं। मेरे साथ भी यही मजबूरी है… मेरे रूप-यौवन के आशिकों ने कई नाम दिए। किसी के लिए अनीमा, नूरजहां, बबली, कोई ऊषा कहकर बुलाता है, तो किसी के लिए मैं सूर्य की पहली मोनिका हूं। पर मेरा वास्तविक नाम यह नहीं है।’’ कहकर मोनिका ने गहरा-लंबा सांस लिया।
अपनी व्यथा-कथा सुनाती हुई मोनिका ने मेरी तरफ देखा, तो मैंने उससे पूछा, ‘‘कब तक अपना तन बेचती रहोगी?’’
‘‘मैं वर्तमान में जीना चाहती हूं, इसलिए भविष्य की चिंता नहीं करती।’’

गोल-मोल जवाब देकर मोनिका होटल के रूम से चली गयी। उसके बाद मैं जब भी शिलाॅन्ग गया, उस लड़की से मुलाकात करने की कोशिश की, लेकिन वह दोबारा नहीं मिली, पता नहीं उसका नाम मोनिका ही था या फिर कुछ और…?
कहानी लेखक की कल्पना मात्र पर आधारित है व इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो यह केवल संयोग मात्र हो सकता है।

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